रीजनल रिपोर्टर

सरोकारों से साक्षात्कार

संस्मरण : आंदोलनकारियों के जनगीतों की गूंज

डा. अतुल शर्मा

राज्य आंदोलन को याद करते हुए जब यह संस्मरण मैं लिख रहा हूँ, तो याद आ रहा है कि जाड़े की सुबह और हड्डी जमा देने वाली ठंड मे उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारियों द्वारा जनगीतों की गूँज से माहौल तरंगित हो जाता था।

मै सन् चौरान्बे से प्रभात फेरियो से शामिल रहा। देहरादून सहित पूरे उत्तराखण्ड में इससे जनजागृति आई ‌।

देहरादून मे सांस्कृतिक मोर्चा का गठन हुआ। इसके संस्थापक सदस्य के रुप मे कार्य होता रहा। नुक्कड़ नाटक मौहल्लों मे होते और जन गीत गूंज उठते।

वीर सिह ठाकुर इसमें अग्रणी भूमिका निभाते और संयोजक बनाये गये दादा अशोक चक्रवर्ती। सभी रंगकर्मी इसमे शामिल रहे।

सुरेन्द्र भंडारी के निर्देशन में नुक्कड़ नाटक हुए। लेखक थे अवधेश। इसे हज़ारों जगह प्रभात फेरियो और पोस्टर प्रदर्शनी हुई।

मशाल जुलूसों मे सांस्कृतिक मोर्चा सबसे आगे रहता ‌।

जनगीतों में “लड़ के लेंगे उत्तराखंड,” “ले मशालें चल पड़े हैं,” “ततुक नी लगा उदेख,” ” उठा जागा उत्तराखंडियो,” ” लड़ना है भाई” आदि बहुत से जन गीत गाये जाते थे ‌।

नरेंद्र सिह नेगी, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, डॉ.अतुल शर्मा, ज़हूर आलम, बल्ली सिंह चीमा, निरंजन सुयाल आदि के जन गीत गाये जाते ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌।


इसी तरह मैं उत्तरकाशी, चमोली, नैनीताल अल्मोड़ा, आदि स्थानों की प्रभात फेरियो मे निरंतर शामिल रहा ‌। फिर मशाल जुलूसों व अन्य प्रकार की गतिविधियों में सांस्कृतिक मोर्चा शामिल रहता ‌।


कई जन गीत पुस्तकों , कैसेटों व फिल्मों के माध्यम से आन्दोलन को गति मिली।


जब भी महौल की गति कम होती, तो जन गीत उठते और माहौल बना देते। यहाँ तक कर्फ्यू को भी तोड़ा गया।


जहां हम रह रहे हैं, वहां से भी हम आते थे। ढपली बजाते हुए निकलते थे ‌‌‌। भगत सिंह कालोनी वाणी विहार मे प्रभात फेरी निकालते ‌‌‌‌‌‌‌‌।


इसमें रणजीत सिह वर्मा, सुशीला बलूनी, वेद उनियाल, रविन्द्र जुगरान आदि उपस्थित रहते ‌।

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