उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने संसद में गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग उठाई;
चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ पर पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान को याद किया गया।
राज्यसभा में गौरा देवी के योगदान को याद किया गया
शीतकालीन सत्र के दौरान सांसद महेंद्र भट्ट ने चिपको आंदोलन की अग्रणी और प्रेरक शक्ति गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग की।
सांसद भट्ट ने राज्यसभा में गौरा देवी के पर्यावरण संरक्षण में योगदान और उनके बलिदान को याद करते हुए कहा
कि उनका संघर्ष न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश में पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में प्रेरक था।
चिपको आंदोलन और गौरा देवी की भूमिका
साल 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड के रैणी गांव में वन विभाग ने पेंग मुरेंडा जंगल को कटान के लिए चुन लिया था।
यह जंगल स्थानीय भोटिया जनजाति की महिलाओं की आजीविका का प्रमुख साधन था।
गौरा देवी के नेतृत्व में गांव की महिलाएं जंगल में पहुंचीं और पेड़ों से लिपटकर उन्हें बचाने लगीं।
उनके इस आंदोलन ने पूरे क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के प्रति चेतना जगाई।
आंदोलन की सफलता के बाद तत्कालीन सरकार ने हिमालयी राज्यों में 15 वर्षों तक
पेड़ कटान पर पूर्ण रोक लगा दी।
इस आंदोलन के कारण ही इसे “चिपको आंदोलन” कहा गया, क्योंकि महिलाएं पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाती थीं।
चिपको आंदोलन का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व
महेंद्र भट्ट ने राज्यसभा में बताया कि चिपको आंदोलन केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं रहा,
बल्कि यह हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार तक फैल गया।
इस आंदोलन ने देश में पर्यावरण संरक्षण को गंभीर मुद्दा बनाया और महिलाओं की सक्रिय भूमिका को उजागर किया।
गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं का यह संघर्ष आज भी पर्यावरण संरक्षण की प्रेरक कहानी के रूप में याद किया जाता है।
सांसद महेंद्र भट्ट की मांग
राज्यसभा में विशेष उल्लेख के दौरान सांसद महेंद्र भट्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि
गौरा देवी के पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक योगदान को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाए।
भट्ट ने ट्वीट कर कहा:
“आज राज्यसभा में विशेष उल्लेख के दौरान केंद्र सरकार से चिपको आंदोलन की अग्रणी स्वर
और प्रेरणा रही स्वर्गीय गौरा देवी को भारत रत्न देने की मांग की।”

















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