- आंध्र–छत्तीसगढ़–तेलंगाना बॉर्डर पर सुरक्षाबलों की बड़ी सफलता
- मरेडुमिल्ली जंगल में हुई मुठभेड़; हिडमा की पत्नी राजक्का भी मारी गई
देश के सबसे खतरनाक और फरार माओवादी कमांडरों में से एक माडवी हिडमा आखिरकार सुरक्षाबलों की कार्रवाई में मारा गया है।
आंध्र प्रदेश के अल्लुरी सीतारामराजू जिले के मरेडुमिल्ली जंगल में तड़के हुए इस एनकाउंटर को हाल के वर्षों में नक्सल विरोधी अभियान की सबसे बड़ी सफलता माना जा रहा है।
हिडमा पर 50 लाख रुपये का इनाम था और वह छत्तीसगढ़, आंध्र और तेलंगाना की सीमाओं पर सक्रिय दंडकारण्य जोन का शीर्ष कमांडर माना जाता था। इस मुठभेड़ में उसकी पत्नी राजे उर्फ राजक्का समेत छह से अधिक माओवादी ढेर हुए हैं।
मरेडुमिल्ली के घने जंगल में सुरक्षाबलों की सफलता
आंध्र प्रदेश के डीजीपी हरीश कुमार गुप्ता ने बताया कि मुठभेड़ सुबह लगभग छह से सात बजे के बीच हुई। सुरक्षाबलों को लंबे समय से इन इलाकों में हिडमा की मौजूदगी की खुफिया जानकारी मिल रही थी।
जवाबी कार्रवाई में माओवादी भारी नुकसान झेलते दिखाई दिए, जिसके बाद क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सर्च और कॉम्बिंग ऑपरेशन चलाया जा रहा है।
यह इलाका ऐसा है जहां तीन राज्यों की सीमाएं मिलती हैं और यही कारण है कि वनों में सक्रिय माओवादी अक्सर राज्यों की सीमा बदलकर सुरक्षाबलों से बच निकलते रहे हैं।
देश के सबसे भीषण नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड
माडवी हिडमा का नाम सुनते ही सुरक्षा एजेंसियों को कई दर्दनाक हमले याद आते हैं। 2010 में दंतेवाड़ा में हुए हमले में 76 सीआरपीएफ जवानों की शहादत ने पूरे देश को झकझोर दिया था और इस हमले की जो योजना सामने आई, उसमें हिडमा की भूमिका निर्णायक पाई गई।
2013 के झीरम घाटी हमले में शीर्ष कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत 27 लोगों की हत्या हुई, जिसे देश के सबसे बड़े राजनीतिक हमलों में गिना गया।
इसके अलावा 2021 में सुकमा–बीजापुर में हुए घातक हमले में 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, इन हमलों में भी हिडमा की रणनीति प्रमुख बताई गई।
हिडमा को सिर्फ एक कमांडर नहीं, बल्कि अत्यधिक प्रशिक्षित और चालाक रणनीतिकार के रूप में जाना जाता था। वह वर्षों तक जंगलों में अपनी यूनिट बदलते हुए सुरक्षाबलों को चकमा देता रहा।
कौन था हिडमा
1981 में वर्तमान सुकमा जिले में जन्मे हिडमा का असली नाम संतोष था। कम उम्र में वह CPI (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी से जुड़ा और जल्द ही माओवादी संरचना में तेजी से ऊपर बढ़ने लगा।
वह संगठन की शीर्ष संस्था सेंट्रल कमेटी का सबसे युवा सदस्य था। बस्तर क्षेत्र से इस स्तर तक पहुंचने वाला वह एकमात्र आदिवासी नेता था। उसे PLGA की बटालियन-1 का नेतृत्व सौंपा गया और उसकी तीनों यूनिट सीधे उसे रिपोर्ट करती थीं।
खुफिया रिकॉर्ड्स के अनुसार हिडमा न केवल हमलों का मास्टरमाइंड था, बल्कि माओवादी कैडर के बीच करिश्माई और प्रभावशाली नेता माना जाता था। बड़ी संख्या में नए लड़ाकों की भर्ती भी उसी के नेटवर्क के जरिए होती थी।
पत्नी राजक्का भी मुठभेड़ में मारी गई
मारे गए माओवादियों में हिडमा की दूसरी पत्नी राजे उर्फ राजक्का भी शामिल है। राजक्का लंबे समय से उसकी टीम में सक्रिय थी और कई अभियानों के दौरान उसके साथ देखी गई थी। माओवादी हलकों में वह एक प्रशिक्षित फाइटर मानी जाती थी।
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि हिडमा के मारे जाने से दक्षिण बस्तर का माओवादी ढांचा बड़ी तरह से कमजोर होगा।
पिछले एक दशक में लगातार बड़े हमलों का नेतृत्व करने वाला यह कमांडर न सिर्फ लड़ाकों को संगठित करता था बल्कि रणनीति, हमला-योजना और इलाके की भौगोलिक समझ में भी बेहद अनुभवी था।









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