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भगवान बिरसा मुंडा जयंती पर एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी

जनजातीय गौरव दिवस पर न्याय, अधिकार और सांस्कृतिक संरक्षण पर हुआ गहन विमर्श

भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान एवं मानव विज्ञान विभाग द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं कुलसचिव प्रो. राकेश डोढी ने दीप प्रज्वलन कर किया।

जनजातीय गौरव दिवस की महत्ता पर चर्चा

कार्यक्रम के संयोजक डॉ. राकेश नेगी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए जनजातीय गौरव दिवस के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला।

उन्होंने बिरसा मुंडा के जनजातीय समुदाय के हितों की सुरक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण तथा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उनके संघर्षपूर्ण आंदोलन को विस्तार से समझाया।

डॉ. सर्वेंद्र यादव ने सेमिनार की थीम प्रस्तुत करते हुए न्याय, गरिमा, आदिवासी अधिकारों का संरक्षण, भूमि–वन आंदोलन, सांस्कृतिक अखंडता, PESA अधिनियम, वनाधिकार अधिनियम 2006, विकास परियोजनाओं की चुनौतियाँ और आत्मनिर्भरता के दर्शन पर विस्तृत विमर्श रखा।

बिरसा मुंडा के विचार आज भी प्रासंगिक: प्रो. एम. एम. सेमवाल

मुख्य वक्ता और राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. एम. एम. सेमवाल ने अपने संबोधन में कहा कि बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना और दिशा दी।

उन्होंने बताया कि 1897 की महामारी में बिरसा मुंडा की भूमिका ने उन्हें जन–नायक से “भगवान” के रूप में प्रतिष्ठित किया।

उन्होंने कहा कि नव–निर्मित जनजातीय बाहुल्य राज्यों द्वारा अपने स्थापना दिवस को बिरसा मुंडा के जन्मदिवस पर मनाना आदिवासी अस्मिता का प्रतीक है।

प्रो. सेमवाल ने उनके प्रेरणादायक नारे “रानी का राज जाएगा, हमारा राज आएगा” का उल्लेख करते हुए बताया कि यह आज भी जनांदोलनों की प्रेरणा है।

उन्होंने यह भी कहा कि उत्तरकाशी के प्रसिद्ध रवाई आंदोलन में भी बिरसा मुंडा के विचारों की स्पष्ट झलक मिलती है।

“युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत”: प्रो. राकेश डोढी

मुख्य अतिथि प्रो. राकेश डोढी ने कहा कि मात्र 25 वर्ष के अल्प किंतु अद्वितीय जीवन में बिरसा मुंडा ने जो उदाहरण प्रस्तुत किया, वह वर्तमान युवाओं के लिए मार्गदर्शक है।

जनजातीय योगदान को मुख्यधारा में सम्मान: प्रो. चौहान

प्रो. हरिभजन सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा जनजातीय गौरव दिवस को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मान्यता देना आदिवासी समाज के योगदान को सम्मानपूर्वक मुख्यधारा में लाने का महत्वपूर्ण कदम है।

उद्घाटन सत्र में प्रो. राजपाल सिंह नेगी, प्रो. वाई. एस. फर्स्वाण, डॉ. एस. एस. विष्ट, डॉ. नरेंद्र चौहान, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. ओमप्रकाश, डॉ. सर्वेश, डॉ. धीरज सहित कई विद्वान, शोधार्थी, छात्र और ऑनलाइन प्रतिभागी जुड़े रहे।

कार्यक्रम का संचालन अपराजिता घड़ियाल ने किया।

द्वितीय सत्र में विभिन्न शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए और बिरसा मुंडा के विचारों को आधुनिक संदर्भों में विश्लेषित किया।

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https://youtu.be/kYpAMPzRlbo?si=tNvpZKdmxwNw739a
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