डॉ. अमिता प्रकरण में गलत जानकारी और देरी पर आयोग का कड़ा रुख
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की सह-आचार्य डॉ. अमिता के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कठोर शब्दों में फटकार लगाई है।
आयोग ने कहा कि शिकायत पर देरी और गलत जानकारी देना गंभीर लापरवाही है और इसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
सुनवाई में कुलसचिव की जानकारी गलत साबित
12 नवंबर को ऑनलाइन सुनवाई के दौरान आयोग ने पाया कि कुलसचिव राकेश डयोढ़ी द्वारा प्रस्तुत कई जानकारियाँ वास्तविक तथ्यों से मेल नहीं खातीं।
सुनवाई में मौजूद डॉ. अमिता ने भी कई बिंदुओं पर विश्वविद्यालय के दावों का खंडन किया, जिसके बाद आयोग ने कुलसचिव के रवैये पर कड़ा असंतोष जताया।
आयोग ने संकेत दिया कि कुलसचिव पर भी कार्रवाई संभव है।
दुर्व्यवहार और POSH उल्लंघन के गंभीर आरोप
डॉ. अमिता ने पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के निदेशक डॉ. सुधांशु जायसवाल पर दुर्व्यवहार, प्रताड़ना और POSH Act 2013 व ICC नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया है।
आयोग ने इस बात पर भी नाराज़गी जताई कि महिला शिकायतों पर 90 दिनों के भीतर कार्रवाई अनिवार्य होने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन इस नियम का पालन नहीं कर पाया।
आयोग ने मांगी POSH गतिविधियों और ICC रिपोर्ट
सुनवाई के दौरान आयोग ने विश्वविद्यालय प्रशासन से निम्न जानकारियाँ तुरंत उपलब्ध कराने के निर्देश दिए—
- POSH कानून के तहत आयोजित कार्यक्रम
- कैंपस में शिकायत पेटियों की स्थिति
- जेंडर सेन्सिटाइजेशन गतिविधियाँ
- ICC में दर्ज सभी शिकायतें और उन पर हुई कार्यवाही की रिपोर्ट
आयोग ने विश्वविद्यालय के रवैये को “बेहद शर्मनाक” और “चिंताजनक” बताया।
10 दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट अनिवार्य
राष्ट्रीय महिला आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि 10 दिनों के भीतर डॉ. अमिता प्रकरण से संबंधित पूरी कार्रवाई रिपोर्ट उपलब्ध कराई जाए।
अन्यथा विश्वविद्यालय प्रशासन और कुलसचिव दोनों के विरुद्ध कठोर कदम उठाए जाएंगे। इसके साथ ही कुलसचिव द्वारा दी गई गलत जानकारी से जुड़े सभी प्रकाशित समाचारों की प्रतियाँ भी आयोग को भेजने को कहा गया है।
आयोग ने कहा है कि किसी भी स्तर पर लापरवाही स्वीकार नहीं की जाएगी और डॉ. अमिता को न्याय दिलाना उसकी प्राथमिकता है।












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