SIR योजना पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, चुनाव आयोग से मांगा जवाब
मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट अब सीधे संवैधानिक सीमाओं पर सवाल उठा रहा है।
अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है और इसके आधार पर किसी को मताधिकार देना गंभीर संवैधानिक चूक हो सकती है।
CJI सूर्याकांत और जस्टिस जे. बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान सवाल किया
“अगर कोई व्यक्ति घुसपैठ कर भारत में रह रहा है और उसे आधार दे दिया गया है, तो क्या यह उसे वोटर बना देने का लाइसेंस है?”
पीठ ने कहा कि आधार योजनाओं का लाभ दिलाने का माध्यम हो सकता है, लेकिन चुनाव अधिकार उससे अलग विषय है।
तीन राज्य कोर्ट पहुंचे, SIR पर बड़ा विरोध
SIR की प्रक्रिया के खिलाफ पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु ने सीधे सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है। इन राज्यों का आरोप है कि
- लाखों वास्तविक मतदाताओं के नाम हटने का खतरा है
- जमीनी स्तर पर सत्यापन जल्दबाजी में हो रहा है
- प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है
राज्य सरकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में कहा “आप नागरिक होने को आधार से नहीं जोड़ सकते। वोट छीनना है तो मजबूत कानूनी प्रक्रिया दिखाइए।”
CJI की ‘लाइन क्लियर’: आधार सुविधा है, अधिकार नहीं
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट शब्दों में कहा “सरकार आधार इसलिए देती है ताकि ग़रीब राशन ले सके, इलाज मिले। लेकिन यह मताधिकार नहीं देता।”
उन्होंने चेताया कि कल्याण नीति को चुनावी पहचान से जोड़ना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।
बिहार मॉडल पर सवाल भी, भरोसा भी
कोर्ट ने बिहार SIR को उदाहरण बनाते हुए कहा कि—
- व्यापक जनजागरूकता थी
- आपत्तियाँ बहुत कम आईं
लेकिन कोर्ट ने यह भी जोड़ा “अगर किसी असली नागरिक का नाम कटा है, तो हम ऐसे मामलों को गंभीरता से सुनने को तैयार हैं।”
‘मरे वोटर हटाने होंगे’
जस्टिस बागची ने कहा कि “सॉफ्टवेयर नकली वोटर्स पकड़ सकता है, लेकिन मरे हुए वोटर्स नहीं। यह फील्ड वर्क से ही होगा।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट इसलिए जारी की जाती है ताकि गलतियों को सुधारा जा सके।
चुनाव आयोग को राहत नहीं, जवाब देना होगा
अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह
- विस्तृत हलफनामा दाखिल करे
- हर राज्य की शिकायत का बिंदुवार जवाब दे
अगली सुनवाई तय:
- केरल — 2 दिसंबर
- तमिलनाडु — 4 दिसंबर
- पश्चिम बंगाल — 9 दिसंबर

















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