गोद लेने की प्रक्रिया को बताया जटिल, केंद्र को 9 दिसंबर तक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश में बच्चों के लापता होने के मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। अदालत के समक्ष एक खबर का हवाला दिया गया, जिसमें दावा था कि भारत में हर आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इस मुद्दे को बेहद चिंताजनक बताते हुए कहा कि गोद लेने की प्रक्रिया की जटिलता के कारण कई लोग अवैध रास्तों की ओर मुड़ जाते हैं, जिससे बच्चों की तस्करी और गुमशुदगी जैसे अपराध बढ़ते जा रहे हैं।
सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपनी चिंता स्पष्ट शब्दों में जताई। उन्होंने कहा कि उन्होंने अखबार में पढ़ा है कि हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो रहा है।
भले ही यह आंकड़ा पूरी तरह प्रमाणित न हो, लेकिन यह संभावित खतरे और गंभीरता को दर्शाता है।
अदालत ने कहा कि गोद लेने की मौजूदा प्रक्रिया इतनी कड़ी और उलझी हुई है कि लोग नियमों को दरकिनार कर अवैध विकल्प तलाशते हैं। इससे न केवल प्रक्रिया कमजोर पड़ती है, बल्कि बच्चों के शोषण का रास्ता भी खुलता है।
केंद्र को मिली समयसीमा और कोर्ट की नाराजगी
सुनवाई के दौरान केंद्र का पक्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने रखा। उन्होंने लापता बच्चों के मामलों की निगरानी के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने हेतु छह सप्ताह का समय मांगा। ले
किन सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रस्ताव को तुरंत खारिज करते हुए कहा कि इतने संवेदनशील मामले में अधिक समय देना संभव नहीं है।
अदालत ने निर्देश दिया कि पूरी प्रक्रिया 9 दिसंबर तक पूरी कर ली जाए, ताकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में त्वरित समन्वय स्थापित हो सके।
पहले दिए गए निर्देश और प्रगति पर सवाल
यह मामला नया नहीं है। 14 अक्टूबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक-एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए और उनके नाम तथा संपर्क विवरण मिशन वात्सल्य पोर्टल पर प्रकाशित किए जाएं।
अदालत ने यह भी कहा था कि जब भी किसी बच्चे के लापता होने की शिकायत पोर्टल पर दर्ज हो, उसे तुरंत संबंधित अधिकारी तक पहुंचाया जाना चाहिए।
अदालत का कहना है कि जमीनी स्तर पर अभी भी राज्यों के बीच समन्वय की कमी है, जिसके कारण बच्चों की खोज में देरी होती है।
समर्पित ऑनलाइन पोर्टल की जरूरत पर जोर
अदालत पहले भी केंद्र से यह आग्रह कर चुकी है कि गृह मंत्रालय की देखरेख में लापता बच्चों की खोज और जांच के लिए एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाए।
सुनवाई के दौरान पीठ ने उल्लेख किया कि कई राज्यों में पुलिस अधिकारी एक-दूसरे से जुड़ी गुमशुदगी की जानकारी साझा करने में देरी कर देते हैं, जिससे नाबालिगों की बरामदगी में महत्वपूर्ण समय बर्बाद हो जाता है।
कोर्ट का मानना है कि एक केंद्रीकृत पोर्टल के माध्यम से न केवल डेटा साझा करना आसान होगा, बल्कि कार्रवाई की गति भी बढ़ेगी।
एनजीओ की याचिका और गंभीर खुलासे
यह पूरा मामला एक जनहित याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में आया। ‘गुरिया स्वयंसेवी संस्थान’ नामक एक एनजीओ ने अदालत को बताया कि कई लापता या अपहृत बच्चों के मामलों में जांच अधूरी रह गई है और खोया/पाया पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी पर कार्रवाई पर्याप्त नहीं है।
संस्था ने अपने दावों को मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश में दर्ज पांच मामलों का उदाहरण दिया, जिनमें नाबालिग लड़कों और लड़कियों का अपहरण किया गया था और फिर बिचौलियों के नेटवर्क के जरिए उन्हें झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में तस्करी कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर मजबूत निगरानी तंत्र हो, तो इन बच्चों को समय रहते बचाया जा सकता है।














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