परंपरा, संस्कृति और पहचान को समर्पित भावपूर्ण आयोजन
संत नारायण स्वामी राजकीय स्नातक महाविद्यालय, नारायण नगर में आज जनजातीय गौरव दिवस अत्यंत उत्साह, गर्व और भावनात्मक वातावरण के बीच मनाया गया।
पूरा परिसर मानो अपने गौरवशाली जनजातीय इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को नमन कर रहा था। छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और अतिथियों की उपस्थिति ने इस अवसर को और अधिक विशेष बना दिया।
प्राचार्य ने भर दी नई ऊर्जा
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य प्रो. प्रेमलता कुमारी ने की। अपने प्रेरक उद्बोधन में उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज हमारी सांस्कृतिक जड़ों का वह प्रखर पक्ष है जिसने सदियों तक प्रकृति, परंपरा और मानवता का संरक्षण किया।
उन्होंने युवाओं से जनजातीय विरासत को समझने और आगे बढ़ाने की अपील की।
संयोजक डॉ. धारियाल ने बताया-जनजातीय इतिहास एक प्रेरणा
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. नरेंद्र सिंह धारियाल ने समारोह को सुदृढ़ और सार्थक रूप देते हुए जनजातीय महापुरुषों के संघर्ष, बलिदान और समाज के उत्थान में उनके योगदान पर विस्तृत प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि यह दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि हमारी संवेदनशीलता और सामूहिक जिम्मेदारी का प्रतीक है।
सुधीर तिवारी ने अपने प्रभावी और रोचक मंच संचालन से पूरे कार्यक्रम को जीवंत बनाए रखा। उनकी प्रस्तुति ने छात्रों और शिक्षकों का उत्साह लगातार बनाए रखा।
प्राध्यापकों ने साझा किए प्रेरक विचार
इस अवसर पर डॉ. प्रेमलता पंत, डॉ. दिनेश कोहली, डॉ. अनुलहुदा, डॉ. नरेंद्र सिंह धारियाल सहित अन्य प्राध्यापकों ने भी अपने विचार साझा किए।
सभी वक्ताओं ने कहा कि जनजातीय समाज के साहस, सरलता, त्याग, पर्यावरण प्रेम और सांस्कृतिक मूल्यों से आज की युवा पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।
कई छात्र-छात्राओं ने भावनाओं से भरे वक्तव्य दिए, जिनमें जनजातीय महापुरुषों के संघर्ष, परंपराओं और संस्कृति के संरक्षण की अपील थी।
छात्रों ने कहा “हमारे पूर्वजों की विरासत ही हमारा भविष्य सुरक्षित करती है। इसे जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है।”
जनजातीय गीतों, पारंपरिक नारों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने पूरे वातावरण को भावुक और प्रेरणादायक बना दिया। महाविद्यालय परिसर में सांस्कृतिक अस्मिता और गौरव की अनूठी छटा दिखाई दी।
अंत में सभी उपस्थित लोगों ने यह संकल्प लिया कि जनजातीय गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुँचाया जाएगा।
यह दिवस केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और महापुरुषों को नमन करने का पवित्र अवसर साबित हुआ।









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