अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश ने मेडिकल इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ते हुए दुनिया की पहली मिनिमल इनवेसिव ऑटोप्सी (Minimally Invasive Autopsy – MIA) प्रक्रिया की शुरुआत की है।
इस तकनीक में बिना किसी चीर-फाड़ के शव परीक्षण किया जाता है, जिससे पारंपरिक ऑटोप्सी के विकल्प के रूप में एक संवेदनशील और वैज्ञानिक समाधान सामने आया है।
क्या है मिनिमल इनवेसिव ऑटोप्सी
मिनिमल इनवेसिव ऑटोप्सी एक आधुनिक फोरेंसिक तकनीक है जिसमें शरीर के अंदरूनी अंगों की जांच हाई-रिजॉल्यूशन इमेजिंग (जैसे CT स्कैन और MRI) की मदद से की जाती है।
इस प्रक्रिया में मृत शरीर को किसी विशेष बैग या स्कैनिंग टेबल पर रखकर उसका थ्री-डायमेंशनल स्कैन लिया जाता है, जिससे अंगों की स्थिति, चोटें या रोगों का पता लगाया जा सकता है।
यह प्रक्रिया पारंपरिक पोस्टमॉर्टम से भिन्न है क्योंकि इसमें शव को चीरने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे न केवल शरीर की गरिमा बनी रहती है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का भी सम्मान होता है।
एम्स ऋषिकेश की अनोखी पहल
एम्स ऋषिकेश के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग ने यह तकनीक भारत में पहली बार पूर्ण रूप से विकसित और लागू की है। विभागाध्यक्ष डॉ. विजेंद्र चौहान ने बताया कि इस प्रणाली को शुरू करने का उद्देश्य शव परीक्षण को अधिक वैज्ञानिक, संवेदनशील और व्यापक बनाना है।
उन्होंने बताया कि यह तकनीक विशेष रूप से उन मामलों में बेहद उपयोगी है जहां परिजनों की धार्मिक आस्था पारंपरिक पोस्टमॉर्टम के विरुद्ध होती है या जब किसी संवेदनशील केस में न्यूनतम हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
इस तकनीक के प्रमुख लाभ:
- गैर-आक्रामक (Non-invasive): शरीर को चीरने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे मृतक के शरीर की गरिमा सुरक्षित रहती है।
- तेज़ और सटीक: डिजिटल इमेजिंग द्वारा मौत के कारणों की जल्दी और स्पष्ट पहचान संभव होती है।
- कम संक्रमण जोखिम: मेडिकल स्टाफ के लिए भी यह तकनीक सुरक्षित होती है क्योंकि खुला शरीर नहीं होता।
- परिजनों की सहमति आसान: इसे परिजनों द्वारा अधिक आसानी से स्वीकार किया जाता है।
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