‘खबरपात’ के चौथे सत्र में आपदाओं के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर भी गहन विमर्श
हिमांशु जोशी
देहरादून स्थित दून लाइब्रेरी में संपन्न ‘खबरपात’ के चौथे संस्करण में इस बार पहाड़ी आपदाओं के अलावा समाज की उपेक्षित चुनौतियों पर भी विचार-विमर्श हुआ।
पिछले तीन सत्र आपदाओं पर ही केंद्रित थे, जबकि इस बार का मुख्य विषय रखा गया ‘आपदाओं से नहीं लिया सबक’।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट ने उत्तराखंड की पुरानी आपदाओं से प्रभावित गांवों पर आधारित कई मौके की रिपोर्टें पेश कीं, जबकि दीपा कौशलम ने ‘महिला सुरक्षा पर उठते सवाल’ पर अपनी राय व्यक्त की।
2012 की त्रासदी के बाद भी जोखिम में बसे गांव
त्रिलोचन भट्ट ने 2012 की आपदा से प्रभावित ऊखीमठ क्षेत्र के मंगोली और चुन्नी गांवों की स्थिति पर आधारित रिपोर्ट दिखाई। उस घटना में 18 व्यक्तियों की जान गई थी।
वीडियो फुटेज से पता चला कि आपदा प्रभावित घोषित किए गए इलाकों में अब नए भवन बन चुके हैं। जिन घरों में तब पानी घुसा था, वहां के निवासियों को अभी तक कहीं और स्थानांतरित नहीं किया गया। राहत तथा पुनर्वास संबंधी घोषणाएं अब भी पूरी नहीं हुईं।
मंदाकिनी तट पर सेमी गांव में बढ़ता संकट
इसके पश्चात मंदाकिनी नदी के किनारे बसे सेमी गांव की रिपोर्ट साझा की गई। यहां की भूमि निरंतर धंस रही है।
ग्रामीणों ने बताया कि केदारनाथ रूट के नीचे संचालित जलविद्युत परियोजना की वजह से यह धंसाव और तेज हो गया है। उनका कहना है कि वे हर पल इस आशंका में जीते हैं कि अगली बारिश में उनके घर बह न जाएं।
रुद्रप्रयाग का ताला गांव जहां 80 परिवारों को छोड़ना पड़ा घर
भट्ट की अगली रिपोर्ट रुद्रप्रयाग जिले के ताला गांव से संबंधित थी। यहां धंसाव की वजह से अब तक 80 परिवारों को विस्थापित होना पड़ा है।
यह गांव सड़क रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही मार्ग चीन सीमा तक जाने वाले रास्तों से जुड़ता है। लेकिन निरंतर धंसाव ने इस सड़क को भी खतरे की जद में ला दिया है।
दीपा कौशलम ने महिला सुरक्षा पर खड़े किए सवाल
कार्यक्रम में महिला मुद्दों पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता दीपा कौशलम ने ‘महिला सुरक्षा पर सवाल’ विषय को विस्तार से छुआ।
उन्होंने NARI-2025 (National Annual Report and Index of Women’s Safety) की मुख्य बातें सामने रखीं।
दीपा ने उल्लेख किया कि रिपोर्ट में देहरादून की 50 प्रतिशत महिलाओं ने शहर को ‘highly safe’ माना, अर्थात बाकी 50 प्रतिशत महिलाओं को यह शहर असुरक्षित लगता है, जो सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा है।
उन्होंने अपना एक व्यक्तिगत प्रसंग भी सुनाया। हाल ही में देहरादून में एक बाइक सवार ने उनसे ‘जुगाड़’ शब्द का आपत्तिजनक तरीके से इस्तेमाल किया।
उन्होंने कहा कि ऐसी छोटी लगने वाली घटनाएं वास्तव में गंभीर होती हैं। यह अनुभव बेहद विचलित करने वाला होता है। ऐसी घटना के बाद कोई महिला आधे घंटे तक यही सोचती रहती है कि किसी ने उसके लिए ऐसा शब्द क्यों चुना।
पहाड़ और समाज, दोनों से सीखने की आवश्यकता
त्रिलोचन भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड की प्रत्येक आपदा एक चेतावनी लेकर आती है, मगर सिस्टम इसे याद नहीं रख पाता।
दीपा कौशलम ने कहा कि जब तक समाज महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को गंभीरता से नहीं अपनाएगा, तब तक कोई रिपोर्ट या कानून काफी नहीं साबित होगा।
पुलिस को अधिक संवेदनशील बनाने की जरूरत है ताकि महिला थाने में जाकर खुद को सुरक्षित महसूस करे।
















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