वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
जब आँखों में शर्म ही न रहे, तो क्या बचा? उत्तराखंड का रजत जयंती वर्ष चल रहा है, मगर यह उत्सव नहीं, वेदना का पर्व बन गया है।
बाहर वालों द्वारा राज्य को रौंदा जा रहा है और भीतर से कुशासन उसे खोखला कर रहा है। फिर भी “लड़के लेंगे, भिड़के लेंगे उत्तराखंड” का नारा गूंजने लगा है।
देहरादून में रजत जयंती विशेष सत्र चला, मगर सामाजिक विश्लेषक अनूप नोटियाल ने सवाल उठाया- यह सत्र गैरसैंण में क्यों नहीं? राष्ट्रपति वहाँ जातीं तो राज्य की आत्मा जागती।
विधानसभा साल में महज 10 दिन चलती है। धराली जैसी आपदाओं के बीच हास-परिहास के आयोजन शोभा नहीं देते। सत्र के दूसरे दिन विधायक विनोद चमोली ने सच्चाई उजागर की-मूल निवासी की परिभाषा इतनी ढीली कर दी गई कि 15 साल पहले आया कोई भी व्यक्ति मूल निवासी बन जाता है।
पर्वतवासियों को आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा। राज्य धर्मशाला बन गया है। उन्होंने पहाड़-गेदान-तराई-भाबर सबकी बात की। जवाब मिला- “हम सब उत्तराखंडी हैं।” हाँ, उत्तराखंडी कहलाना गोरव है, इसलिए उत्तरांचल को उत्तराखंड बनाने में सात साल लगे।
मगर चिंता यह है कि गैर-मूल को 15 साल में ही मूल निवासी बना दिया जा रहा है। डोमिसाइल नियम भी शिथिल हो रहे हैं।
परिसीमन का भयावह भविष्य
चिंता की बात न होती तो क्यों जोत सिंह बिष्ठ राजनेता, जयसिंह रावत, शीशपाल गुसाई जैसे पत्रकार अपनी गणना अपने गांव मुहिम की आहवाहन क्यों करते।
प्रवासियों से उनका अनुरोध है कि प्रवासी उत्तराखंडी अपने मूल गांवों में अपनी गणना करवायें। अपील में कहा गया है कि 1970 की जनगणना के आधार पर 70 विधान सभा सीट का जो परिसीमन हुआ था उसमें नो पर्वतीय जिलों को चालीस और चार मैदानी जिलों को 30 सीट आंवटित की गई थी।
किन्तु 2001 की जनगणना के आधार परदूसरे परिसीमन में पर्वतीय जिलों की सीटें घटकर 34 और मैदानी जिलों की बढ़कर 36 हो गई थी। अब आगामी 2027 केपरिसीमन में यदि यह जनसंख्या असंतुलन और गहराया तो 9 पर्वतीय जिलों की घटकर 25 तथा 4 मैदानी जिलों की बढ़कर 45 तक पहुंच सकती है।
या तो फिर मैदानी पहाड़ी की लड़ाई इस तरह भड़क सकती है कि नारा हो जाये कि मैदानों से भी मूल महाड़ी को जिताओं। पूरे पहाडी मूल को वरीयता की बात उठ ही जायेगी।
हाईकोर्ट ने भी दिखाया आईना
हाईकोर्ट ने 3 नवाबर को नैनीताल जिले में भाजपा के नेता मदन जोशी के खिलाफ तत्काल कार्यवाही करने को कहा जिसने क्षेत्र में सम्प्रादायिक तनाव भड़काने की कोशिश की।
मामला जिसमें एक तोडर के ड्राइवर को यह आरोप लगाकर मारना शुरू किया गया कि वह गाय का मोस ले जा रहा था । जांच में वह मांस गाय का नहीं निकला था। ऐसी स्थितियां एक दिन ते नहीं आई। कुछ को लगता है कि बड़ नेताओं के करीब हम ऐसा करने से ही जायेंगे।
नेता क्या चाहते है उनके भाषणों से मालूम चल जाता है। इसी विशेष रजत जयंती विधान सभा सत्र में मुख्य मंत्री जी इतना भर कह कर कड़ा संदेश दे सकते थे कि राज्य में किसी को भी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण नहीं करने दिया जायेगा इसके विपरीत बात उन्होंने यहां तक बढ़ा दी नीली हरी चादरों से जमीन का अतिक्रमण नहीं होने देंगे।
क्या इतना पर्याप्त नहीं था कि सरकारी जमीनों पर कब्जा नहीं होने देंगे।
पर्यावरण और आपदा प्रबंधन की नाकामी
5 नवंबर को उत्तरकाशी DM को भागीरथी इको-सेंसिटिव जीन में अवैध होटल रिसॉर्ट की रिपोर्ट देने को कहा गया, अनुपालन नहीं हुआ।
देहरादून बाढ़ में विधायकों के नाक के नीचे नदी धारा मोड़कर रिसॉर्ट बनाए गए। 8 नवंबर को धराली आपदा पीड़ितों की उपेक्षा पर हाईकोर्ट ने सरकार की रिपोर्ट खारिज की।
रजत जयंती सप्ताह में ही कोर्ट ने पूछा – रेगिंग रोकने का बिल कब लाएँगे?” 13 करोड़ की नकली ब्रांडेड दवाएँ पकड़ी गई।
मुम्बई पुलिस ने अंतरराज्यीय ठ्या गिरोह का पता उत्तराखंड से लगाया, तब स्थानीय पुलिस को खबर हुई। नकती थी का कारोबार भी बाहर की पुलिस ने पकड़ा।
महिला-बच्चियों की असुरक्षा, स्वास्थ्य-शिक्षा की बदहाली
उत्तरकाशी मुनस्यारी में भालू हमले से दो महिलाओं की मौत। एक बच्ची के माता-पिता मनचले के डर से स्कूल नहीं भेज पा रहे। शिक्षा अधिकारी ने महिला पत्रकार से अभद्रता की।
8 नवम्बर की ही रुद्रप्रयाग जिले की खबर है कि प्रसव वेदना में पड़ी गर्भवती महिला को ले जाती ऐम्बुलेन्स रास्ते में ही खराब होगई। दूसरी ऐम्बुलेन्स के पहुंचने के पहले ही खरब ऐम्बलेन्स में महिला ने शिशु जन्म दिया।
रौं कई घटनामें राज्य में होती रही है। ऐसा बस दुर्घटनाओं के समग भी हुआ है। रोज बयानबाजी होती है कि राज्य को इतने इतने से नई भर्ती से डाक्टरों की सौगात मिलेगी पर वो सौगात कभी नहीं मिलती।
बल्कि रोना तो उन सककारी मेडिकल कालेजों का भी है जहां अस्पताल भी बतने हे व मेडिकल की पढ़ाई होनी है। वहां डाक्टरों की बेहद कमी है। चौखुटिया वालों की स्वास्थ्य की खराब हालत व अपने-अपने अस्पताल की उच्चीकरण के लिये धरना प्रदर्शन इसका द्योतक है। सहकारी मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरो की भयंकर कभी। चौखुटिया में अस्पताल अपग्रेडेशन के लिए धरना। 94% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नहीं, 70% पहाड़ी जितों में विशेषज्ञ डॉक्टर गायब। 25 साल में 4000 सरकारी स्कूल बंद।
खेलों में भी बाहर वालों को सौगात
राष्ट्रीय खेलों में रिकॉर्ड मेडल आए मगर वरिष्ठ आंदोलनकारी रविन्द्र बुगराण ने सवाल उठाया – डोमिसाइल न होने वाले खिलाड़ियों को क्यों पुरस्कारा राज्य का पैसा बाहर वालों पर क्यों?
देवभूमि की मर्यादा भंग
देवभूमि में मर्यादा बनाये रखने का भी दायित्व नहीं निभा रहा है। केदारनाथ में कैसी-कैसी रीलें बन चुकी है। श्री बदरीनाथ धाम में भी पारम्परिक पूजा-अर्चना करने कराने वाले परिवार जब तब असंतोष जाहिर कर ही देते हैं।
जगदगुरू शंकराचार्य ज्योतीरमठ स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने भी 22, 23 जून 2023 को सार्वजनिक रूप से यह बताया था कि श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर में स्वयं वहां मौजूद था।
तब वहां चाबी ले कर कतिपई पण्डा पुरोहित पहुंचे तो देखा वहां उनके घर व दुकानें वहां नहीं थी।
उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ धाम महायोजना के कामों में धाम की धार्मिक विशिष्टताओं की उपेक्षा की जा रहीं है। उन पवित्र धाराओं को जिनमें रावल जी के स्रान की महत्ता को भी क्षतिग्रस्त किया गया है।
भ्रष्टाचार में जीरो टॉलरेंस कहाँ?
मुख्यमंत्री सोचें कि वो इतने कमजोर कैसे हो गये हैं कि वो जरूरत भर भी मंत्री नहीं रख पा रहें है या भ्रष्ठ व अकर्मण्यों की नहीं हटा पा रहें हैं। ये कहां का भ्रष्ठा के प्रति जीरो टोलरेंस हैं।
अपने मंत्रीमंडल के साथी प्रेम चंद्र अग्रवाल को भी उनके जनता के साथ सार्वजनिक रूप से देखे गये ळवहार या बनने वाले एक रिस्टोर में वनभूमि पर कब्जा जिसकी एफ आडू आर सरकारी कर्मचारी ने ही लिखाई थी नहीं हटा पाये।
परन्तु हर दूसरे तीसरे महिने बाद ऐसी खबरें प्लांट हो जाती हैं कि जल्दी ही मंत्री मण्डल विस्तार व कुछ की छुट्टी होगी। परन्तु होता तब यह है कि जिनको हटाये जाने का डर सताने लगता है वे सबसे ज्यादा केन्द्रीय मंत्रियों व नेताओं से शिष्टाचार भेंट करने दिल्ली परिक्रमा पर निकल जाते हैं।
चाहिये वो सबसे ज्यादा शियटाचार भेंट भ्रष्ट अकर्मण्य या भ्रष्ट मंत्री मंत्रियों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा न हटा पाना। और मंत्रीमंडल का विस्तार न कर पाना राजनैतिक व प्रशासकीय दृष्टि से कमजोर नेतृत्व का ही द्योतक ही नहीं है बल्कि राज्य की बेहद बेहद दुर्गति का कारण भी है सौगात की ही बात करे तो इसी विशेष विधान सभा सत्र में जब प्रतिपक्ष के नेता ने मुनीकिरेती की उस शराब की दुकान का जिक्र किया जिसके विरोध में जनता धरना दे रही है किन्तु सरकार पुलिस के संरक्षण में शराब बिकवा रही है तो केबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना था कि पहले जब यह शराब की दुकान नहीं थी वो लोगों को दूर दूसरी जगह जाना पड़ता था। यह तो सौगात ही हुई जैसे बहते पहाड़ों की सौगात मिल रही हैं।
कर्ज और सौगात का ढोंग
हर नागरिक के सिर पर 1 लाख रुपए कर्ज। ठेकेदारों के करोड़ों बिल रूके हुए। अस्पताल कैशलेस उपचार बंद करने की धमकी दे रहे। डबल इंजन की डबल गति से सिर्फ कर्ज बढ़ा। मुनीकीरेती में शराब दुकान के विरोध में जनता धरना दे रही, पुलिस संरक्षण में बिक्री। केबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल पहले दूर जाना पड़ता था, यह तो सौगात है। जनता के हकको सौगात बताना जनता पर वोट हे प्रबार में करोड़ों खर्च, सवाल उठाने वाले युवा पत्रकार संतृत कोटियाल के पोस्ट हटवाए गए, छवि खराब करने की कोशिश की गई।
अंतिम चेतावनी
भ्रष्टाचार, सेक्स व्यापार, साइबर ठगी, नकली दवाएँ, बच्चों में नशा पे सब बढ़ रहे हैं। जो मुण आप में नहीं, उनकी प्रशंसा करने वाले आपके अवगुणों की आलोचना भी करेंगे। ढलान का कोई रोडमैप नहीं होता। 2050 के रोडमैप से पहले सुरक्षित वापसी का रास्ता अपनाइए। नहीं तो उत्तराखंड की जनता ‘लड़के लेंगे, भिड़के लेंगे” का नारा सड़कों पर उतार देगी। ये लेखक के निजी विचार है)
वीरेन्द्र कुमार पेन्यूली
मो 9358107716,7579192329, 82796 62373
फ्लैट नं 26
लार्ड कृष्णा रेजीडेन्सी
5/28, तेगबहादुर रोड
देहरादून उत्तराखंड












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