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कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में 6 साल बाद लौटी हाथी सफारी

सर्द मौसम में पर्यटकों को बड़ा तोहफा, ढिकाला और बिजरानी जोन में शुरू हुआ रोमांच

सर्दियों के पर्यटन सीजन के बीच उत्तराखंड के पर्यटन को बड़ी सौगात मिली है।

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में करीब छह साल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर हाथी सफारी शुरू कर दी गई है।

प्रशासन को Chief Wildlife Warden देहरादून से अनुमति मिलने के बाद यह फैसला लागू किया गया,

जिससे देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है।

क्यों अहम है हाथी सफारी की वापसी

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व दुनिया भर में अपनी समृद्ध जैव विविधता, रॉयल बंगाल टाइगर

और घने जंगलों के लिए प्रसिद्ध है।

हाथी सफारी यहां के पारंपरिक पर्यटन अनुभव का अहम हिस्सा रही है।

इसकी बहाली को पार्क के पर्यटन परिदृश्य में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

जून 2024 में हुई State Wildlife Board की बैठक में हाथी सफारी को दोबारा शुरू करने

की सैद्धांतिक मंजूरी दी गई थी,

जिसके बाद सभी विभागीय औपचारिकताएं पूरी कर इसे लागू किया गया है।

ढिकाला और बिजरानी जोन में संचालन

हाथी सफारी फिलहाल कॉर्बेट के दो प्रमुख जोनों ढिकाला और बिजरानी में शुरू की गई है।

  • ढिकाला जोन: यहां 2 हाथियों से दो निर्धारित रूटों पर सुबह और शाम की शिफ्ट में सफारी कराई जा रही है। इन रूटों पर पर्यटक रामगंगा नदी, घने साल के जंगल, विशाल घास के मैदान और वन्यजीवों को बेहद नजदीक से देख पा रहे हैं।
  • बिजरानी जोन: यहां 1 हाथी के माध्यम से 2 रूटों पर लगभग दो घंटे की हाथी सफारी कराई जा रही है, जिसमें पर्यटक जंगल की प्राकृतिक खूबसूरती और वन्यजीवों की गतिविधियों का अनुभव ले रहे हैं।

टिकट, शुल्क और नियम

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के पार्क वार्डन बिंदर पाल सिंग ने बताया कि हाथी सफारी के टिकट पार्क के रिसेप्शन सेंटर से उपलब्ध होंगे। टिकट वितरण पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा।

  • भारतीय पर्यटकों के लिए शुल्क: ₹1000 प्रति व्यक्ति
  • विदेशी पर्यटकों के लिए शुल्क: ₹3000 प्रति व्यक्ति
  • एक हाथी पर अधिकतम 5 लोग (बच्चों सहित) बैठ सकेंगे
  • 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए टिकट निःशुल्क
  • सफारी अवधि: लगभग 2 घंटे

⚖️ विश्लेषण: 6 साल बाद क्यों संभव हुई बहाली

हाथी सफारी वर्ष 2018 से बंद थी, जब Uttarakhand High Court ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम

1960 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत पार्क में हाथियों के

व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगा दी थी। अब नियमों और दिशा-निर्देशों के

अनुरूप सीमित और नियंत्रित रूप में हाथी सफारी की अनुमति दी गई है,

जिससे वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया गया है।

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