महाकुंभ-2025: प्रयागराज में 12 वर्षों बाद महाकुंभ का आयोजन

प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू होगा महाकुंभ-2025

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ-2025 को भव्य तथा दिव्य रूप देने के सभी इंतजाम कर लिए हैं। महाकुंभ-2025 की तैयारियों को लेकर प्रयागराज में नया जिला चार तहसीलों के 67 गांवों को मिलाकर बनाया गया है।

विस्तार

महाकुंभ-2025 का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पौष महीने की पूर्णिमा को 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ मेला विधिवत रूप से शुरू होगा। महाकुंभ का यह मेला 26 फरवरी 2025 तक चलेगा।

यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी ऐतिहासिक बनने जा रहा है। इस मेले में देश-विदेश से 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ के आयोजन को सुचारू और प्रभावी बनाने के लिए प्रयागराज के महाकुंभ क्षेत्र को नया जिला घोषित कर दिया गया है, जिसे ‘महाकुंभ मेला जनपद’ के नाम से जाना जाएगा।

नए जिले का गठन मुख्य रूप से कुंभ मेले के विशाल आयोजन को बेहतर प्रबंधन और प्रशासनिक कार्यों को सुगम बनाने के लिए किया गया है। इससे न केवल मेले की व्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि क्षेत्र के विकास और जनहित के कार्यों में भी तेजी आएगी।

4 महीने के लिए यूपी में बना नया जिला

प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियों और प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक अस्थायी जिला बनाया गया है, जो कि दूसरे स्थायी जिलों की तरह ही कार्य करेगा। इसमें डीएम, एसपी, मजिस्ट्रेट जैसे सभी पद सृजित किए गए हैं।

‘महाकुंभ मेला जनपद’ में प्रयागराज की तहसील सदर, सोरांव, फूलपुर और करछना को शामिल किया गया है। इसके अलावा परेड क्षेत्र और इन चार तहसीलों के 67 गांव भी इस नए जिले का हिस्सा होंगे।

महाकुंभ-2025 में भव्य ग्राम

उत्तर प्रदेश के महाकुंभ के मेले में तमाम तैयारियां के बीच एक अनोखा स्थल भी स्थापित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के अनोखे स्थल का नाम संस्कृति ग्राम रखा गया है।

प्रयागराज के महाकुंभ मेला अधिकारी की जिम्मेदारी IAS अधिकारी विजय किरण आनंद को सौंपी गई है। महाकुंभ मेला अधिकारी विजय किरन आनंद ने बताया कि, अगले वर्ष 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ मेले को दिव्य तथा भव्य बनाने के लिए तैयारियां अंतिम दौर में हैं।

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा महाकुंभ मेला क्षेत्र में पांच एकड़ के क्षेत्रफल में संस्कृति ग्राम का निर्माण किया जा रहा है। संस्कृति ग्राम में 45 दिन स्थानीय हस्तकला व शिल्प की प्रदर्शनी के साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन होंगे।

संस्कृति ग्राम में आगमेंटेड रियलिटी (एआर) व वर्चुअल रियलिटी (वीआर) के जरिये महाकुंभ के विभिन्न सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पहलुओं को दर्शाया जाएगा।

संस्कृति ग्राम में विभिन्न कालखंडों में महाकुंभ की यात्रा को एआर व वीआर के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। संस्कृति ग्राम विभिन्न जोन में बंटा होगा जिसमें प्राचीन तथा पौराणिक विरासत, इतिहास में वर्णित विदेशी यात्रियों के संस्मरण, अंतरिक्ष विज्ञान, विभिन्न कलाओं का प्रदर्शन मुख्य होंगे।

संस्कृति ग्राम में महाराजा हर्षवर्धन द्वारा कुंभ के लिए दिए दान की जानकारी, एआर माध्यम से समस्त स्थलों की विशेषता, उनके ऐतिहासिक व सांस्कृतिक तथ्य, 360 डिग्री आभासी वातावरण, मल्टीमीडिया डिस्प्ले, लाइव स्ट्रीमिंग वर्चुअल टूर जैसी सुविधाएं होंगी।

प्रदर्शनी स्थलों पर वेद, पुराण, चरक संहिता व प्राचीन ज्योतिषीय शास्त्रों को उल्लेखित किया जाएगा। प्राचीन विश्वविद्यालयों का जिक्र किया जाएगा। मुख्य मंच पर शास्त्रीय व लोक नृत्य-संगीत की प्रतिदिन विशिष्ट प्रस्तुतियां होंगी।

जानें महाकुंभ मेले की महत्ता

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभूतपूर्व आयोजन है, जिसकी जड़ें समुद्र मंथन की प्राचीन कथा में हैं। इस पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया ताकि अमृत यानी अमरता प्रदान करने वाला अमृत प्राप्त किया जा सके। मंथन में मंदराचल पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया।

भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण कर पर्वत को स्थिर रखा ताकि वह समुद्र में डूब न जाए। यह कथा केवल एक धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की गहराई में छिपी शक्तियों को खोजने और मुक्ति प्राप्त करने का प्रतीक भी है।

समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया। इस विष को पीने के बाद उनका गला नीला हो गया, और वे नीलकंठ कहलाए। इसके बाद मंथन से कई अद्भुत चीजें निकलीं, जिनमें से अमृत सबसे मूल्यवान था।

जब भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए, तो देवताओं और असुरों के बीच इस अमृत को पाने के लिए संघर्ष शुरू हो गया।

जयंत ने अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए बारह दिनों तक चार स्थानों पर छिपाया: हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक-त्र्यंबकेश्वर, और उज्जैन। इन स्थानों पर अमृत की बूँदें गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए और इन्हीं जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

तीन प्रकार का होता है कुंभ

कुंभ मेले का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि इसका ज्योतिषीय आधार भी है। जब सूर्य, चंद्रमा, और बृहस्पति एक विशेष ज्योतिषीय स्थिति में होते हैं, तब इन स्थानों पर मेले का आयोजन होता है।

सामान्य कुंभ मेला हर तीन साल में होता है, अर्धकुंभ छह साल में, और पूर्ण कुंभ बारह साल में आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला धार्मिकता, आस्था, और संस्कृति का एक अनूठा संगम है। यह आयोजन न केवल भारत के विभिन्न कोनों से लाखों लोगों को जोड़ता है, बल्कि विश्वभर के पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।

यह मेला आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं, जिससे उनके पापों का नाश और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

इतिहास में भी कुंभ मेले की महत्ता को कई बार रेखांकित किया गया है। सन् 1942 में प्रयागराज कुंभ के दौरान, पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय लिनलिथगो को बताया था कि इतने बड़े आयोजन के लिए केवल दो पैसे के पंचांग की आवश्यकता होती है।

https://regionalreporter.in/38th-national-games-will-be-held-in-uttarakhand/
https://youtu.be/kYpAMPzRlbo?si=rZPyP_klZ1K3xklL

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