मंगलवार, को आईजी शशांक आनंद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताई बीएसएफ की रणनीतिक कार्रवाई
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी ढांचे को खत्म करने के लिए एक सुनियोजित सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की।
यह ऑपरेशन 7 मई से शुरू हुआ और इसका उद्देश्य था—सीमा पार छिपे आतंकियों के ठिकानों को नष्ट कर भारत की सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
जम्मू फ्रंटियर के बीएसएफ आईजी शशांक आनंद ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि कैसे बीएसएफ ने पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को तबाह किया।
उन्होंने कहा कि, बीएसएफ ने इस अभियान के तहत 8 मई की रात से ही पाकिस्तान की ओर से हो रही गोलीबारी का सख्त जवाब देना शुरू किया।
पाकिस्तान ने 9 मई को सांबा और जम्मू के उत्तरी हिस्सों में अकारण गोलीबारी की, जिसका जवाब बीएसएफ ने न केवल दिया, बल्कि सीमा पार आतंकी ठिकानों को भी निशाना बनाया।
विशेष रूप से लश्कर-ए-तैयबा के लूनी स्थित लॉन्च पैड को बीएसएफ ने 9-10 मई की रात को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र 3 किलोमीटर दूर स्थित था।
बीएसएफ ने खुफिया जानकारी के आधार पर यह हमला दो चरणों में अंजाम दिया, जिसमें 18-20 आतंकियों के मारे जाने की संभावना जताई गई है।
पाकिस्तानी सैन्य ढांचे को भारी नुकसान
बीएसएफ की जवाबी कार्रवाई सिर्फ सीमित गोलीबारी तक नहीं रही। भारत ने 11 पाकिस्तानी एयरबेसों पर हमला कर उनके रडार सिस्टम, संचार केंद्रों और हवाई संचालन संरचनाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया।
यह हमला साफ संकेत था कि भारत अब “पहले गोली, फिर जवाब” की नीति छोड़कर proactive रणनीति अपना चुका है।
100 से अधिक आतंकी मारे गए
ऑपरेशन सिंदूर के तहत जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत की यह सैन्य कार्रवाई केवल जवाबी नहीं, बल्कि निर्णायक और प्रभावशाली थी।
चौकी का नाम रखा गया ‘सिंदूर’ चौकी
उन्होंने बताया कि हम अपनी दो चौकियों का नाम शहीदों के नाम पर रखने जा रहे हैं। हमने अपनी एक चौकी का नाम सिंदूर चौकी रखने का भी फैसला किया है। हम सरकार को प्रस्ताव भेजने जा रहे हैं।
हमने सुनिश्चित किया कि दुश्मन हमारे नागरिकों को निशाना न बना सके। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी महिला कर्मियों ने सक्रिय भूमिका निभाई। उनके पास मुख्यालय जाने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने सीमा चौकियों पर ही रहना चुना।
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