जातिगत जनगणना को कैबिनेट की मंज़ूरी

भारत सरकार ने स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार जातिगत जनगणना कराने की औपचारिक मंज़ूरी दे दी है। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया। इस ऐलान के बाद देश में सामाजिक संरचना और नीति-निर्धारण के लिए नए द्वार खुल सकते हैं।

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार, 30 अप्रैल को राष्ट्रीय मीडिया केन्द्र में आयोजित पत्रकार वार्ता में इसकी जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि सरकार ने यह निर्णय सामाजिक संतुलन, पारदर्शिता और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए लिया है। हमारा मानना है कि इस कदम से समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त होगा।

94 साल बाद होगी जातिगत जनगणना

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस फैसले को लेकर कहा कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सामाजिक न्याय के लिए लगातार जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे।

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि देश का वास्तविक विकास, समावेशी विकास तभी हो सकता है जब दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और शोषितों को विकास में वैज्ञानिक तरीके से हिस्सेदारी मिलेगी इसलिए राहुल गांधी जातिगत जनगणना पर लगातार जोर दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि आज मोदी सरकार की कैबिनेट को भी इस मांग पर मुहर लगानी पड़ी। अब 1931 के बाद करीब 94 साल बाद जातिगत जनगणना होगी।

जातिगत जनगणना

जातिगत जनगणना का अर्थ है- देश की कुल आबादी में किस जाति के कितने लोग हैं, इसका विस्तृत और प्रमाणिक आंकड़ा इकट्ठा करना। यह आंकड़े सरकार को नीतियां बनाने, आरक्षण, सामाजिक योजनाओं, संसाधनों के वितरण और प्रतिनिधित्व में संतुलन लाने में मदद करते हैं।

भारत में अंतिम बार 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी। उसके बाद केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े लिए जाते रहे हैं, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और बाकी जातियों के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

कब से शुरू होगी जनगणना

सरकार ने संकेत दिए हैं कि जनगणना सितंबर 2025 से शुरू हो सकती है, जिसे पूरा होने में करीब एक साल का समय लगेगा। इस आधार पर अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में जारी किए जा सकते हैं।

गौरतलब है कि पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, और 2021 में कोविड-19 के कारण जनगणना स्थगित कर दी गई थी।

जातिगत जनगणना का सफर

जातिगत जनगणना कोई नई अवधारणा नहीं है, लेकिन स्वतंत्र भारत में इसे लेकर हमेशा से ही संशय और बहस रही है।

  • 1931: भारत में अंतिम बार ब्रिटिश शासन के दौरान जातिगत जनगणना हुई थी। यह वही आंकड़े हैं जिनके आधार पर आज भी कई आरक्षण नीतियाँ बनती हैं।
  • 2011: यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) करवाई थी। लेकिन तकनीकी खामियों, वर्गीकरण में भ्रम और राजनीतिक असहमति के चलते यह डेटा सार्वजनिक नहीं हो सका।
  • 2023: बिहार सरकार ने राज्य स्तर पर जातिगत सर्वेक्षण कर उसे सार्वजनिक किया। इसके आंकड़े सामने आने के बाद जातिगत जनगणना को लेकर राष्ट्रीय बहस ने जोर पकड़ लिया।

जातिगत जनगणना विचार की उत्पत्ति

जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से विपक्षी दलों और सामाजिक न्याय के पक्षधर नेताओं द्वारा की जाती रही है

  • राहुल गांधी ने 2023 से लगातार “जाति की गिनती होनी चाहिए” का नारा दिया। उन्होंने इसे “हिंदुस्तान की असली तस्वीर” बताया।
  • मल्लिकार्जुन खड़गे (कांग्रेस अध्यक्ष) ने संसद और मंचों से मांग की कि सामाजिक कल्याण योजनाओं को सटीक बनाने के लिए जातिगत आंकड़े अनिवार्य हैं।
  • तेजस्वी यादव और अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी बिहार जाति सर्वेक्षण के बाद इसे राष्ट्रीय स्तर पर दोहराने की मांग की।

जातिगत जनगणना महत्वपूर्ण तथ्य और प्रभाव

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि 2025-26 के दौरान जातिगत जनगणना कराई जाएगी, और इसकी प्रक्रिया डिजिटल रूप में संचालित होगी।

  • शिक्षा और स्वास्थ्य में सामाजिक समूहों की स्थिति समझना
  • आर्थिक असमानताओं को मापना
  • आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा करना
  • जातिगत डेटा सामने आने के बाद आरक्षण की वर्तमान सीमा (50%) पर पुनर्विचार संभव
  • दलित, पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी पर नए सिरे से बहस
  • कुछ विशेषज्ञों ने इसे सामाजिक विभाजन को बढ़ाने वाला बताया
  • डेटा के दुरुपयोग की संभावना को लेकर चिंता
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