भारत में सड़क दुर्घटनाएं हर वर्ष लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं। ऐसे में दुर्घटना के बाद के पहले घंटे जिसे “गोल्डन ऑवर” कहा जाता है-में समय पर इलाज मिलना पीड़ित की जान बचाने में निर्णायक होता है।
इसी के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए घोषित कैशलेस उपचार योजना को “सही अर्थों में” लागू करे।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केंद्र सरकार को अगस्त 2025 के अंत तक एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें बताया जाए कि योजना के तहत अब तक कितने लोगों को लाभ मिला, और उसका क्रियान्वयन किस स्तर पर है।
केंद्र सरकार ने अदालत को सूचित किया कि यह योजना 5 मई से लागू की जा चुकी है। इसके अनुसार, किसी भी सड़क पर मोटर दुर्घटना का शिकार हुआ व्यक्ति अधिकतम ₹1.5 लाख तक का मुफ्त इलाज प्राप्त कर सकता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं दिखी।
अदालत ने टिप्पणी की कि जनवरी 2024 में दिए गए आदेश के बावजूद सरकार ने न योजना लागू की और न ही समय सीमा बढ़ाने की मांग की, जो अवमानना के दायरे में आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस लापरवाह रवैये पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि क्या सरकार वास्तव में आम लोगों के कल्याण के लिए कार्य कर रही है?
अदालत ने राजमार्ग निर्माण की गति की सराहना तो की, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इन सड़कों पर दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं और ‘गोल्डन ऑवर’ के दौरान जरूरी चिकित्सा सुविधाएं न मिल पाने के कारण अनगिनत जानें जा रही हैं।
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 164A के तहत यह प्रावधान 1 अप्रैल 2022 को लागू किया गया था, लेकिन तीन वर्षों के निर्धारित समय में भी इसे प्रभावी रूप नहीं दिया गया। यह योजना एक कल्याणकारी प्रावधान है, जिसका उद्देश्य है हर दुर्घटना पीड़ित को समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान करना, ताकि अनावश्यक मृत्यु को टाला जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप एक बार फिर यह दर्शाता है कि नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा केवल कानून बनाने से नहीं, बल्कि उसके प्रभावी और ईमानदार क्रियान्वयन से होती है। केंद्र सरकार के लिए यह एक चेतावनी है कि अब और देर न करते हुए इस योजना को जमीनी स्तर पर लागू करे, ताकि हर सड़क दुर्घटना पीड़ित को समय पर और बिना भुगतान के चिकित्सा सुविधा मिल सके।
