भारतीय लोकतंत्र की न्यायपालिका ने एक बार फिर संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा में अपनी भूमिका निभाई है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को यह स्पष्ट निर्देश दिया कि किसी भी व्यक्ति को निर्वासित करने से पहले उसकी नागरिकता और वैध दस्तावेजों की गहन जांच करना अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और न्यायाधीशों की टिप्पणियाँ
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ द्वारा की गई। दोनों न्यायाधीशों ने मामले की गंभीरता को समझते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
पीठ ने कहा कि, “किसी भी नागरिक को बिना उचित दस्तावेजों की जांच किए निर्वासित करना संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इस मामले में पूरी पारदर्शिता बरती जाए।”
इसके बाद, उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को आदेश दिया कि इस परिवार के दस्तावेजों की जांच गहनता से की जाए और जब तक जांच पूरी नहीं होती, तब तक परिवार को पाकिस्तान भेजने की प्रक्रिया पर रोक रहेगी।
क्या है मामला
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के एक परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया कि उन्हें पाकिस्तान भेजने की तैयारी की जा रही है, जबकि उनके पास भारतीय नागरिकता से संबंधित वैध दस्तावेज—जैसे आधार कार्ड, पासपोर्ट और पैन कार्ड—मौजूद हैं।
याचिकाकर्ता के अनुसार, वे दो दशकों से अधिक समय से भारत में रह रहे हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई यहीं हुई है और वे भारत में ही रोज़गार कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें पाकिस्तान भेजना न केवल अमानवीय होगा बल्कि कानून के भी विरुद्ध होगा।
परिवार के कुछ सदस्यों को श्रीनगर में हिरासत में लिया गया और उन्हें वाघा सीमा के लिए रवाना कर दिया गया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब तक दस्तावेजों की पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक परिवार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि दस्तावेजों की जांच से संबंधित कोई आपत्ति हो, तो याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं।
यह मामला हाल ही में पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले के बाद सामने आया है, जिसमें कई लोगों की जान गई थी। इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर बड़ी संख्या में पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द किए और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू की। इसी नीति के तहत उक्त परिवार को पाकिस्तान भेजने की तैयारी की जा रही थी।