भारत ने उच्च ऊंचाई पर निगरानी और संचार क्षमताओं को एक नई ऊंचाई दी है। DRDO ने अपने स्वदेशी स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म का पहला सफल उड़ान परीक्षण मध्य प्रदेश के श्योपुर में किया।
यह एक ऐसा तकनीकी प्रयोग है जो भारत को अत्याधुनिक ‘High Altitude Pseudo Satellite’ क्षमताओं की ओर ले जाता है।
क्या है स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म?
यह एक हल्के-से-हवा वाला, बिना चालक के संचालित एयरशिप है जिसे लगभग 17 किमी की ऊंचाई (स्ट्रेटोस्फेयर) में स्थिर रहकर निगरानी, संचार और डाटा रिले के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसका विकास एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ADRDE), आगरा द्वारा किया गया है।
मुख्य विशेषताएँ (Key Features):
- उड़ान ऊंचाई: लगभग 17 किमी (स्ट्रेटोस्फेयर में)
- उड़ान अवधि: पहली उड़ान में 62 मिनट तक संचालन
- लंबी स्थायित्व क्षमता: भविष्य में 15-20 दिन तक लगातार निगरानी करने की योजना
- स्वायत्त नियंत्रण प्रणाली: पूरी तरह से रिमोट व ऑटोमैटिक कंट्रोल से लैस
- हल्की सामग्री से बना: वजन कम, पर स्थायित्व और सहनशीलता अधिक
- पे लोड कैपेसिटी: निगरानी कैमरे, रडार, संचार डिवाइस और सेंसर
- पुनः उपयोग की सुविधा: एक बार लैंडिंग के बाद दोबारा इस्तेमाल योग्य
- डेटा कलेक्शन: मौसम, हवाई ट्रैफिक और सुरक्षा निगरानी हेतु उपयोगी
- आपातकालीन सिस्टम: डिफ्लेशन व ऑटो डेसेंड सुरक्षा प्रणाली
- सक्रिय निगरानी/संचार हब के रूप में उपयोगी: विशेष रूप से सीमावर्ती व दुर्गम क्षेत्रों के लिए

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने DRDO को बधाई देते हुए कहा, “यह भविष्य की निगरानी तकनीक का प्रतीक है।”
DRDO प्रमुख डॉ. समीर वी. कामत ने इसे “मेड-इन-इंडिया टेक्नोलॉजी का स्वर्णिम अध्याय” बताया।
डीआरडीओ चेयरमैन डॉ समीर वी कामत के मुताबिक, यह प्रोटोटाइप उड़ान हवा से हल्के उच्च ऊंचाई वाले प्लेटफॉर्म सिस्टम को साकार करने की दिशा में एक मील का पत्थर है जो समताप मंडल की ऊंचाइयों पर बहुत लंबे समय तक हवा में रह सकता है।
