जनवरी में खिल गए केदारघाटी में फ्यूंली के फूल

केदार घाटी के खेत-खलिहानों में मार्च माह के दूसरे सप्ताह में खिलने वाले फ्यूंली के फूलों के जनवरी माह के तीसरे सप्ताह में खिलने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं। फ्यूंली के फूलों के जनवरी माह में खिलने पर कोई जलवायु परिवर्तन मान रहे हैं तो कोई प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप।

भले ही निर्धारित समय से दो माह पूर्व फ्यूंली के फूल खिलने का कारण कुछ भी हो मगर दिसम्बर से लेकर फरवरी माह तक बर्फबारी से लदक रहने वाले खेत-खलिहानों में जनवरी माह में फ्यूंली के फूल खिलना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।

दो दशक पूर्व की बात करें, तो चैत्र मास के आगमन पर फ्यूंली व बुरांस के फूल खिलते दिखाई देते थे। फ्यूंली का फूल बसन्त आगमन व ॠतु परिवर्तन का ध्योतक माना जाता था तथा चैत्र मास आगमन पर नौनिहाल घरो की चौखटो में ब्रह्म बेला पर फ्यूंली, बुरांस सहित अनेक प्रजाति के पुष्पों को बिखेर कर बसन्त आगमन के सन्देश देने की परम्परा युग-युगान्तरों से लेकर आज भी जीवित है।

फ्यूंली के फूल की महिमा व सुन्दरता की महिमा का गुणगान गढ़ गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी ने भी बडे मार्मिक तरीके से किया है जबकि संगीतकारों, साहित्यकारों व चित्रकारों ने भी फ्यूंली के फूल की महिमा को जन-जन तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया है।

फ्यूंली के फूल के निर्धारित समय से पूर्व खिलने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है, उनका कहना है प्रकृति के साथ निरन्तर मानवीय हस्तक्षेप होने तथा जलवायु परिवर्तन के कारण फ्यूंली निर्धारित समय से पूर्व खिल रही है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।

मदमहेश्वर घाटी रासी गाँव के शिक्षाविद भगवती प्रसाद भट्ट बताते है कि दो दशक पूर्व फरवरी माह तक अधिकांश खेत-खलिहान बर्फबारी से लदक रहते थे तथा मार्च महीने मे ही प्रकृति के साथ ही फ्यूंली के फूलों में नव ऊर्जा का संचार देखने को मिलता था तथा मार्च महीने के दूसरे सप्ताह में फ्यूंली का फूल पूर्ण यौवन पर रहता था।

गुरिल्ला संगठन की जिलाध्यक्ष बसन्ती रावत ने बताया कि फ्यूंली का फूल बसन्त ॠतु आगमन का ध्योतक माना गया है तथा जनवरी में फ्यूंली के खिलना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।

निवर्तमान जिला पंचायत सदस्य परकण्डी रीना बिष्ट ने बताया कि कुछ समय पूर्व जब धियाणिया चैत्र महीने में मायके जाती थी तथा मायके से ससुराल विदा होते समय खेत-खलिहानों व पैदल रास्तों के दोनों किनारों खिली फ्यूंली हमेशा मायके की याद दिलाती थी।

पूर्व प्रधान राय सिंह धर्म्वाण ने बताया कि जनवरी माह मे फ्यूंली का खिलना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है तथा प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप बन्द नहीं हुआ तो भविष्य में गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

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https://youtu.be/kYpAMPzRlbo?si=9ZOiFIkgWdyhZ6A2
लक्ष्मण सिंह नेगी
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