उत्तर प्रदेश के बदायूं निवासी मशहूर शायर फहमी बदायूंनी का रविवार को निधन हो गया। वह 72 साल के थे और लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे। उनका इलाज दिल्ली के एम्स में भी चल रहा था। पिछले तीन दिनों से उनकी तबीयत बहुत खराब थी। वह कुछ खा भी नहीं पा रहे थे। रविवार को उन्होंने बिसौली स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली।
फहमी बदायूंनी उर्दू के मशहूर शायर थे। उनका जन्म 4 जनवरी 1952 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था। परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए उन्होंने पहले लेखपाल की नौकरी की, लेकिन बाद में उन्होंने इसे छोड़ दिया।
विज्ञान और गणित में रुचि रखने वाले फहमी बदायूंनी को छोटे मीटर में बड़े दोहे सुनाने वाला शायर माना जाता है और उनकी शायरी नई नस्ल के शायरों के लिए जमीन तैयार करने वाली थी।
फहमी साहब शायरी के मंचों पर भी काफी लोकप्रिय थे। जब वह अपने खास अंदाज में शायरी सुनाते तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते। फ़हमी बदायूंनी के निधन के बाद उनके चाहने वाले उन्हें उनकी शायरी के ज़रिए याद कर रहे हैं।
उनके शार्गिद श्रीदत्त शर्मा मुजतर बिसौलवीं ने बताया कि फहमी साहब को मुरारी बापू काफी पसंद करते हैं। गुजरात में उनके आश्रम में वह करीब 20-25 बार मुशायरा कर चुके हैं। कई बार बापू उन्हें अपने साथ कार्यक्रम में ले जाते थे। फहमी साहब सऊदी अरब, अफ्रीका, यूएसए समेत कई देशों में मुशायरों में भाग ले चुके हैं। देश में करीब 200-250 मुशायरों में शिरकत की।
फहमी बदायूनी की शायरी
फहमी बदायूंनी के एक मुशायरे में “प्यासे बच्चे पूछ रहे हैं, मछली-मछली कितना पानी, छत का हाल बता देता है, पतनालों से बहता पानी।” उनका यह शेर खासा प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद उनका देशभर के मुशायरों में आना जाना हो गया। एक के बाद एक उनके कई शेर खासे चर्चित हुए। शायरी की दुनियां में फहमी बदायूंनी एक अलग पहचान बन चुके थे।
शायर फहमी बदायूंनी को उनकी मशहूर शायरी ‘कोई दुनिया में चेहरा देखता है कोई चेहरे में दुनिया देखता है’, ‘तुमने नाराज होना छोड़ दिया… इतनी नाराजगी भी ठीक नहीं’, ‘पूछ लेते वो बस मिजाज मेरा… कितना आसान था इलाज मेरा’, ‘घर के मलबे से घर बना ही नहीं… जलजले का असर गया ही नहीं’ और ‘हमारा हाल तुम भी पूछते हो… तुम्हें मालूम होना चाहिए।’
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