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डोनर नेटवर्क और गाइडलाइंस की दरकार: प्लेटलेट्स संकट में समाधान की खोज

हिमांशु जोशी

भारत में प्लेटलेट्स की आपूर्ति मांग के मुकाबले कम है और इससे डेंगू, मलेरिया और कैंसर जैसे मरीजों को आपात स्थितियों में पर्याप्त प्लेटलेट्स नहीं मिल पाते।

आपात स्थितियों में मिलती-जुलती प्लेटलेट्स के प्रयोग पर स्पष्ट और पारदर्शी गाइडलाइंस की जरूरत है।

देशभर के अस्पतालों में इन दिनों प्लेटलेट्स की कमी मरीजों और उनके परिजनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।

डेंगू, मलेरिया और कैंसर जैसे रोगों से जूझ रहे लोगों को ब्लड बैंकों की कमी और अव्यवस्थित व्यवस्थाओं के कारण भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में भर्ती 45 वर्षीय कैंसर पीड़ित राधा (बदला हुआ नाम) के परिजनों को पिछले महीने के अंत में मरीज के लिए प्लेटलेट्स जुटाने के लिए आधी रात को लगभग 54 किलोमीटर दूर हरिद्वार जाना पड़ा।

अस्पताल ने ‘अर्जेंट’ लिखे आवेदन फॉर्म के बावजूद सिर्फ उसी ब्लड ग्रुप की प्लेटलेट्स लेने की शर्त रखी।

भारत में रक्त और उसके घटकों की आपूर्ति और मांग के बीच अंतर को लेकर साल 2022 के दौरान PLOS ONE पत्रिका में एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रकाशित हुआ था।

The Clinical Demand and Supply of Blood in India: A National Level Estimation Study नाम के इस अध्ययन में भारत में रक्त की कुल मांग का अनुमान 14.6 मिलियन यूनिट्स (1.46 करोड़ यूनिट्स) लगाया गया है, जबकि आपूर्ति केवल 93% है, यानी 13.8 मिलियन यूनिट्स।

प्लेटलेट्स की कमी के असली कारण

प्लेटलेट्स का जीवनकाल केवल 5 से 7 दिन होता है, इसलिए उनकी आपूर्ति हमेशा चुनौतीपूर्ण रहती है। समस्या तब और बढ़ जाती है जब प्रशासनिक नियम और लचर व्यवस्था इस कमी को और गहरा देते हैं।

2025 की AABB (American Association of Blood Banks) और ICTMG (International Collaboration for Transfusion Medicine Guidelines) गाइडलाइंस कहती हैं कि आपात स्थिति में मिलती-जुलती प्लेटलेट्स का उपयोग सुरक्षित और प्रभावी हो सकता है।

इसके बावजूद मरीज के परिजनों को अनावश्यक दौड़भाग करनी पड़ती है। AABB और ICTMG दोनों ने मिलकर यह दिशानिर्देश तैयार किए हैं ताकि प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन में एकरूपता, सुरक्षा और मरीज की वास्तविक जरूरत के आधार पर निर्णय सुनिश्चित किया जा सके।

यह स्थिति सिर्फ देहरादून में नहीं है। देश के अन्य छोटे शहरों और कस्बों में हालात और भी गंभीर हैं। ब्लड बैंकों में स्टॉक की कमी, डिजिटल नेटवर्क का अभाव और जागरूकता की कमी इस समस्या को और जटिल बनाती है।

देहरादून के मोहित सेठी का अनुभव

ऐसे संकट के समय मोहित सेठी जैसे वॉलंटियर्स उम्मीद की किरण बनकर सामने आते हैं। कोविड काल में उन्होंने रक्त और प्लेटलेट्स की व्यवस्था कर सैकड़ों लोगों की जान बचाई।

देहरादून में उनका नेटवर्क इतना मजबूत है कि एक फोन कॉल पर डोनर तैयार हो जाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक व्यक्ति या कुछ वॉलंटियर्स पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी छोड़ना उचित है। सिस्टम की खामियों का बोझ इन निस्वार्थ वॉलंटियर्स पर पड़ रहा है।

मोहित कहते हैं कि लोग रक्तदान से कतराते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर इन्हीं वॉलंटियर्स से तुरंत मदद की उम्मीद करते हैं।

कई बार इन निस्वार्थ रक्तदाताओं को स्वार्थी कहकर तंज किया जाता है और उनके सामने रुपयों का प्रस्ताव रखा जाता है।

मोहित सेठी का सुझाव है कि प्लेटलेट्स संकट को कम करने के लिए भारत में गाइडलाइंस पारदर्शी हों और आपात स्थिति में मिलती-जुलती प्लेटलेट्स का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाए।

उन्होंने इस विषय पर स्वास्थ्य अधिकारियों और उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के साथ पत्राचार भी किया है।

उनका कहना है कि डिजिटल ब्लड बैंक नेटवर्क से सभी ब्लड बैंकों को जोड़ा जाए ताकि स्टॉक की वास्तविक जानकारी तुरंत उपलब्ध हो।

रक्तदान को नियमित आदत बनाया जाए और प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित की जाए ताकि मरीजों को अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े।

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https://youtu.be/kYpAMPzRlbo?si=Q-jsoYUI4Wq852io
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