अमिता डोभाल रतूड़ी
24 फरवरी की देर शाम मेरी घरेलू सहायिका का वॉइस मैसेज आया। ”मैडम जी! मैं कुम्भ जा रही हूँ, मेरी चार दिन की छुट्टी।“ बस ये उसकी छोटी सी लीव एप्लिकेशन थी। मैंने कोई जवाब नहीं दिया, थोड़ा सा गुस्सा भी आया, ये क्या तरीका है छुट्टी मांगने का?
ठीक चार दिन बाद वो काम के लिए उपस्थित थी। पड़ोस से कुछ लोग गए थे उनके साथ गई।
दिल्ली में लाल किला भी देखा, लेकिन सिर्फ बाहर से, अंदर से कैसा होगा? उसका मुझसे प्रश्न था। बहुत पैदल चलना पड़ा, लेकिन अच्छा लगा, इसी बहाने घर से बाहर निकल पाई।“ वो अपनी यात्रा से उत्साहित थी।
”अपने से काम कर रही हूँ, कमा रही हूँ, अभी भी अपनी इच्छा पूरी नहीं करूंगी, तो कब करूंगी? “ वो मेरी दूसरी सहायिका से बात कर रही थी। पहली तारीख थी, वेतन देने का दिन। ”तुमने तो बहुत छुट्टियां कर ली इस महीने। पता है माँ बीमार है और मुझे आॅफिस जाना होता है।“ थोड़े रोष से मैंने कहा।
”आप पैसे काट लो ना चार दिन के। मैडम जी ये थी ना यहाँ पर, इसलिए चली गई। अगर आंटी अकेले होती, तो नहीं जाती कभी।“ उसने दूसरी सहायिका की ओर इशारा किया और सीधे-सीधे पैसे काटने को भी कह दिया।
बंगाल से आई इस महिला की कथा भी उन महिलाओं की कथा जैसी ही है, जिनके पति मजदूरी से कमाया पैसा शराब पीने में उड़ा देते हैं और घर का खर्चा ना चलने पर पत्नी की पिटाई करना अपनी मर्दानगी समझते हैं।
देहरादून में बरसों से रह रहे भाई के भरोसे पति-पत्नी दो बच्चों सहित यहाँ चले आये। पति ने कुछ दिन मजदूरी की, लेकिन क्राॅनिक शराबी कुत्ते की पूंछ की तरह होता है, जो कभी सीधी नहीं होती। पत्नी ने भी दो घरों में काम करना आरम्भ किया।
एक दिन फिर शराब के नशे में पत्नी के बाल पकड़ पहला हाथ मारा ही था कि दोनों बेटों ने पिता की जम कर कुटाई कर दी। इस अप्रत्याशित घटना से गुस्साया पति दूसरे ही दिन बंगाल का टिकट कटा वापस चला गया।
”मैडम जी! बच्चों को बाप पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था।“ मेरा माली जो उसका मकान मालिक भी था, उसने मुझसे कहा।
” ठीक किया बच्चों ने, इतने वर्षों से पिट रही थी, कोई आया उसे बचाने?“ मेरी बात माली को कितना हजम हुई, पता नहीं, लेकिन चुप हो गया।
अब यही महिला 2-3 घरों में काम कर अपने पैरों पर खड़ी है और उधर पति परेशान है, उसकी खुशी देखकर। दो दिन मजदूरी करता है, जम कर दारू पीता है और फ्री के राशन से पेट तो भर ही जाता है।
” बहुत मार खाई है पति की मैंने, इतनी कि कमर में दर्द रहता है अब। अब दो पैसे हाथ में आए हैं, तो अपने मन की करने को जी चाहता है। कुछ अच्छा पहनूँ, अच्छा खाऊँ, घूमने जाऊँ।“ वो दूसरी महिला से अपना दर्द भी बाँट रही थी और अपनी इच्छाएं भी।
जिओ महिलाओं, कभी तो करो अपने मन की। ऐसी ही महिलाओं का आत्मनिर्भर, सशक्त होना असली महिला दिवस है, बाकी मंच पर महिला सशक्तिकरण के भाषण देना तो बहुत आसान है।