सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई अखिल भारतीय कानून नहीं होने पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 29 जनवरी को कहा कि “देश में घरेलू कामगारों का शोषण हो रहा है और उनको काम के बदले उचित वेतन भी नहीं मिल रहा है।”
कोर्ट ने केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों के शोषण के मद्देनजर रखते हुए उनके लिए उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक कानूनी ढांचा तैयार करने और विशेषज्ञ समिति का गठन करने के निर्देश दिए हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां ने कहा कि, घरेलू कामगार अक्सर एससी, एसटी ओबीसी और ईडब्ल्यूएस कैटगरी से आते हैं और वित्तीय समस्याओं के कारण उन्हें घरेलू काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उनकी कमजोरी और भी बढ़ जाती है।
पीठ ने कहा कि “सरकार की ओर से घरेलू कामगारों के लिए कानून बनाने के लिए ऐसा कोई प्रभावी विधायी या कार्यकारी कदम नहीं दिख रहा है, जिससे देशभर में लाखों असुरक्षित घरेलू कामगारों को राहत मिल सके।
कोर्ट ने निर्देश दिए कि,सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को घरेलू कामगारों के अधिकारों और उनके हितों की रक्षा, संरक्षण एवं विनियमन के लिए कानूनी ढांचा तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की एक संयुक्त समिति गठित करनी चाहिए।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि,”महिलाओं के लिए रोजगार के किसी भी अवसर का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन हमें यह जान कर दुख होता है कि, उनकी बढ़ती मांग के बावजूद, घरेलू कामगारों के शोषण और दुर्व्यवहार के लिए महिलाएं सबसे अधिक असुरक्षित है।”
पीठ ने कहा कि, मौजूदा मामलों के देखने से यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता को कई वर्षों तक प्रताड़ित और शोषण किया गया। पीठ ने फैसले में कहा है कि शिकायतकर्ता को काम पर रखने वाली कथित प्लेसमेंट एजेंसी ने लगातार उसका वेतन हड़प लिया, जिससे वह पूरी तरह से बेसहारा और असहाय हो गई।
पीठ ने कहा कि, यह भी उतना ही उल्लेखनीय है कि केंद्रीय कानून के माध्यम से घरेलू कामगारों के लिए व्यापक सुरक्षा नहीं होने के बावजूद, कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल ने उनके अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए पहल की है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला डीआरडीओ के वैज्ञानिक अजय मलिक द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जिसमें उनके देहरादून स्थित घर में एक घरेलू कामगार की तस्करी और गलत तरीके से कारावास से संबंधित उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।