बहुआयामी: गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’

अरुण कुकसाल लगता है, अपनी रोशनी विहीन मां से दव्रित होकर ‘गिर्दा’ ने अपने आस-पास के मानवीय समाज को अन्तःमन से पहचाने और उनकी भावनाओं को बखूबी अभिव्यक्त करने की … Continue reading बहुआयामी: गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’