मैं आज तक हिमालय को सुकीली सुंदर कहते आया था , लेकिन अंदर से वह कितना टूटा ,दुखी और बेबस है वह अब महसूस कर रहा हूँ जब मैं टूट चुका हूँ , बेबस हो चुका हूँ, बेसहारा हो चुका हूँ..
मेरे आँखो के सामने जो हर दिन नास्टैल्जिया में सफेद पंचाचूली तैरता था, उन तैरते सफेद बर्फ की चादर को अपने गीत में उतारता था मुझे वह बिल्कुल काला नजर आ रहा है। गोरी नदी से लाल खून बहते हुई नजर आ रही है .. डफ़िया मुन्याल, न्योली वन पक्षी की रोने की आवाज़ सुन रहा हूँ..
मेरी भूली दिया और मयाली नानी की मृत्यु के साथ ही हिमाल को सुंदर बताने वाली मेरी आवाज की भी मृत्यु हो चुकी है। यह आवाज अब कभी नहीं सुनायी देगी, जब तक कि टूटे, बिखरे, लाचार हिमाल की बात को कोई धरती के निर्दयी, निर्मम कर्ता-धर्ता सुन ना ले …
यह संभव भी नहीं है कि उसकी आवाज सुन ली जाय और यह संभव भी नहीं कि अब मेरी आवाज कोई सुन पाये..
24 घंटे तक मेरी भूली और नानी उस इनसानी मौत के लिए बने बिल्डिंग में तड़पती रही और अगले 12 घंटे में मेरी भूली नानी ने साँसे छोड़ दी..
मैं और मेरा परिवार नहीं चाहते की इस क्षति का आरोप उस मौत के लिए बनाई गई बिल्डिंग में कार्यरत डॉक्टर्स, नर्स और कार्यकर्ताओं पर पड़े.. उनके पास जिस तरह के भी संसाधन, सोच, समझ और अनुभव था उनका उन्होंने इनका इस्तेमाल किया। भले वह दोनों की जान बचाने के लिए पर्याप्त नहीं थे।
मुनस्यारी में स्थित उस सरकारी हास्पिटल को मौत का बंगला इसलिए कह रहा हूँ की ऐसा किस तरह का वह हॉस्पिटल है जहाँ पर रात में मरीजों के साथ उनकी देखरेख के लिए एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को तैनात किया जाता है।
मालूम चला कि उसका काम यह है कि मरीज और तीमारदार के छटपटाहट के बाद ही वह रात को जाकर नर्स और डॉक्टर के दरवाजे को खटखटाता है।
मेरा आग्रह है की उस मौत के बंगले के बाहर एक नोटिस चिपका दे की “रात्रि में स्वास्थ सेवा उपलब्ध नहीं है, कृपया मरीज अपने स्वास्थ और जीवन की जिम्मेदारी स्वयं ले।” जिससे की उस रात मरीज अपने जीवित रहने की बहूत बड़ी गलफ़हमी में ना पड़े।
इस घटना से मैं जुड़ा हुआ हूँ तो इस तरह के हालात से आप लोग जान पा रहे है। वहाँ के ऐसे ना जाने कितने तमाम बाशिंदे होंगे जिन्होंने भरोसे के लिए एक रात उस मौत के बिल्डिंग में बितायी होगी और अगली रात उन्हें जीवन में नसीब नहीं हुआ होगा और आगे भी यह जारी रहेगा।
खैर मैं वहां तैनात डॉक्टर्स और अन्य कर्मचारियों पर किसी भी तरह के लापरवाही के लिए उन्हें दंडित करने की माग नहीं कर रहा हूँ। मैं फिर उस बात को दोहरा रहा हूँ कि जितने संसाधन, जितनी समझ, जितना अनुभव और जितना स्टाफ़ वहाँ मौजूद होगा उन्होंने अपनी कोशिशें ज़रूर की होंगी ..
बस शासन-प्रशासन एक छोटा सा काम कर दे कि ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में रात के अनुपलब्धता के लिए एक नोटिस बोर्ड जरूर चिपका दे, क्योंकि मेरी बहन जो 29 साल की थी अभी उसने आधे से ज़्यादा उम्र बिताने थी और मेरी नानी जिसने मुझे अभी और दुवा देनी थी उन्हें रात के वह 12 घंटे की क़ीमत अपनी ज़िंदगी से चुकानी पड़ गई..
शासन वाक़ई कितना लाचार, ग़रीब व असहाय है जिसके पास रात की तैनाती के लिए एक नर्स तक रखने के लिए धन नहीं है..
मुझे माफ़ करना भूली दिया और नानी मैंने उस अस्पताल के भरोसे पर तुम्हें एक आसान सी मौत दिला दी। भुली तुम तो जानती हो ना कि मैं कितना ज़िद्दी हूँ लेकिन समय रहते तुम्हें वहाँ से निकालने की ज़िद मैं उनसे नहीं कर पाया।
भूली मैं तुम्हारे बेहतर भविष्य के लिए तुम्हें इस छोटी से सफ़र में प्यार देने से ज़्यादा डाँट-पटक करते रहा, तुमसे कितना प्रेम था उसे जता भी नहीं पाया, उसकी कसक में ताउम्र मेरा प्राण गलते रहेगा, दुखते रहेगा, मुझे माफ कर देना मेरी भूली..
मैं इस दर्द को शायद धीरे-धीरे भुला लूँगा, लेकिन भूली तुम जहाँ भी हो एक काम कर देना माँ और पिताजी तुम्हारी याद में जिस तरह परहोश है उन्हें ताक़त दे देना।
नानी तुम तो बिल्कुल एक नटखट बच्चे की तरह थी। तुम्हें चटक हरे रंग की साड़ी पसंद थी, तुम पुराने किस्से कहानी को मेरे पास आकर सुनाती थी, तुम अपने आधे से ज़्यादा टूट चूके दाँतो से बात- बात पर ठहाके लगाते हुए दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री दिखती थी। तुम्हारी खुरदरी हथेलियों को अभी भी मैं अपने गालों में महसूस कर रहा हूँ नानी!
Leave a Reply