उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर उपसभापति का फैसला आज सामने आ गया है। सूत्रों के अनुसार, राज्यसभा महासचिव ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने सभापति को हटाने के विपक्ष के महाभियोग नोटिस को खारिज कर दिया है।
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संसद के शीतकालीन सत्र में सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस खारिज कर दिया गया है।रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यसभा उपसभापति हरिवंश ने सभापति को हटाने के विपक्ष के महाभियोग नोटिस को खारिज कर दिया है।
उपसभापति का कहना है कि विपक्ष का महाभियोग नोटिस तथ्यों से परे है, जिसका उद्देश्य प्रचार हासिल करना है। सभापति के खिलाफ विपक्ष का नोटिस जानबूझकर महत्वहीन है, उपराष्ट्रपति के उच्च संवैधानिक पद का अपमान है।
यहां तक कि नोटिस को त्रुटिपूर्ण, अनुचित और मौजूदा उपराष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए जल्दबाजी में तैयार किया गया है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ विपक्ष का प्रस्ताव
राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए अनुच्छेद 67बी के तहत नोटिस दिया था। ये नोटिस राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी को सौंपा गया था।
देश में 72 साल के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में राज्यसभा सभापति के खिलाफ कभी महाभियोग नहीं आया था। राज्यसभा के सभापति को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस दिया जाना जरूरी होता है, जबकि संसद का शीतकालीन सत्र ही 20 दिसंबर तक चलना है।
धनखड़ पर सदन में पक्षपातपूर्ण बर्ताव करने का आरोप लगाया था। साथ ही इस नोटिस पर विपक्ष की तरफ से 60 सांसदों ने साइन किए थे।
विपक्षी सांसदों ने धनखड़ पर कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषणों को बार-बार बाधित करने का आरोप लगाया था। उन्होंने धनखड़ पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर पर्याप्त बहस से इनकार करने का भी आरोप लगाया है।
विपक्ष ने दावा किया कि धनखड़ ने संसदीय मानदंडों का उल्लंघन किया है और नोटिस में ऐसे उदाहरणों का जिक्र किया गया है, जब खड़गे के संबोधन के दौरान उनका माइक्रोफोन बंद कर दिया गया था।
विपक्ष ने ऐसे उदाहरणों की ओर भी इशारा किया, जहां धनखड़ ने कथित तौर पर सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी की। विपक्ष का यह भी आरोप था कि विवादास्पद बहस के दौरान सभापति ने सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों के प्रति पक्षपात दिखाया।