श्रीनगर में लगातार बारिश के बाद कई जगह हुआ भूधंसाव
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की टनल से जुडे़ क्षेत्रों में हुआ है भू धंसाव
गंगा असनोड़ा
बीते पांच वर्षों में जोशीमठ के बाद कर्णप्रयाग और अब श्रीनगर तक विकास रूपी विनाश पहुंच चुका है।
उत्तराखंड में पहले कस्बों को अनियोजित शहरों का विस्तार दिया गया और अब वे शहर बर्बादी के कगार पर हैं।
एनटीपीसी की बांध परियोजना ने ऐतिहासिक जोशीमठ शहर के लोगों को दर-दर भटकने पर मजबूर कर दिया। आज तक उन्हें दिये गए आश्वासनों पर सरकार टस से मस तक नहीं हो पाई है।

श्रीनगर में ग्लास हाउस रोड से लेकर टीचर्स कॉलोनी तक के हिस्से दरकते रास्तों और दरकते भवनों का अभिशाप आ गया है। लोग अपनी जिंदगी भर की कमाई से बनाए भवनों को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं।
सरोजनी देवी, विकास सिंह, वासुदेव कंडारी तथा राकेश नैथानी के भवन तो पूरी तरह जमीन छोड़ चुके हैं। ऐसे में उन्हें भी अपना आशियाना छोड़ना पड़ा है।
इन्हीं भवनों में किराए पर रहने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के विद्यार्थी किसी तरह अपने साथियों के यहां सिर ढांपने के लिए निकले हैं।
जोशीमठ हुआ कोई साथ नहीं आया, अंकिता हत्याकांड हुआ, कोई साथ नहीं हुआ, हाल ही में जीतेंद्र प्रकरण पर स्थानीय लोगों के अलावा किसी ने हाथ में मशाल नहीं थामी।

रेलवे सुरंगों ने कई गांवों और शहरों के नीचे की जमीनों की चीर दिया और कोई टस से मस नहीं हुआ। ऑल वेदर रोड के नाम पर लाखों पेड़ काट लिए गए, किसी ने उफ्फ तक नहीं की।
ये सब त्रासदियां ही तो थीं, जिनको सबने लोगों पर आई आपदा समझकर दरकिनार कर दिया।
हां! खलंगा के लिए देहरादून के लोगों, संस्थाओं तथा समाजसेवियों ने एकजुटता दिखाई, जिससे हम उन शानदार जंगलों का सुख कई-कई वर्षों तक भोग सकते हैं।
हालांकि विकास के नाम पर देहरादून कम बर्बाद नहीं हुआ है।
सतत विकास की अवधारणा को कोसों दूर छोड़ हम कहां
पहुंच गए? जहां कल हुआ, वे भी अपने थे, जो आज हैं, वे भी अपने हैं, अब कल हम होंगे।
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