रीजनल रिपोर्टर

सरोकारों से साक्षात्कार

नाजुक टैक्टोनिकली संवेदनशील भूसंरचना वाले श्रीनगर -कलियासौड़ क्षेत्र

नाजुक टैक्टोनिकली संवेदनशील भूसंरचना वाले श्रीनगर -कलियासौड़ क्षेत्र की ह्रदय स्थली को चीर कर गुजर रही है ॠषिकेश श्रीनगर रेलवे टनल।

गजेन्द्र दानू

  • श्रीनगर गढ़वाल व इसके आसपास का क्षेत्र लेसर हिमालयी क्षेत्र के अन्तर्गत आता है जो कि भूगर्भीय दृष्टि से एक जटिल भू संरचना युक्त क्षेत्र माना जाता है। यहां भविष्य में भूकंपीय चुनौतियों की अधिक संभावनाएं इसलिए मानी जाती हैं क्योंकि इस क्षेत्र में भूगर्भीय संरचना नाॅर्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट( NAT) बिल्कुल ही बाजू में यानि कि कलियासौड़ भूस्खलन क्षेत्र में अवस्थित है और इसके धरातल की चट्टानों की बनावट अत्यंत क्षत-विक्षत स्थिति में व अलग-अलग प्रकार की हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र टैक्टोनिक गतिविधियों यानि कि भूकंपीय दृष्टि से अत्यधिक प्रभावित होने वाला है। मैं भूविज्ञान के विद्यार्थी के रुप में यह कह सकता हूं कि इस क्षेत्र की स्थिरता और भविष्य में सुरक्षा की चुनौती का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि श्रीनगर कलियासौड़ NAT के पास ही है और इसके दोनों तरफ नार्थ -साउथ में MCT और MBT नामक और भी बड़े भ्रंश 10-20kmके दायरे में हैं तथा इन सभी NAT,MCTऔर MBT को क्रासॅ करते हुए रेलवे टनल गुजर रही है जो कि नाजुक ‘सेस्मिक बेल्ट ‘ वाला क्षेत्र है। जिसके भीतर से रेलवे टनल का गुजरना भविष्य में मानवीय आपदा एवं प्राकृतिक संतुलन व संरक्षण की दृष्टि से विपदा पूर्ण चुनौती खड़ी कर सकता है। टनल collapse की संभावना को कम करने के लिए बहुत ही अत्याधुनिक तकनीकी पूर्ण ढंग से खुदाई और सुदृढ़ीकरण (reinforcement) की आवश्यकता है।नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट के पास मुख्य रूप से फ्रैक्चर्ड फिलाइट्स,स्लेट्स, फ्रैक्चर्ड क्वार्जाइट्स और शेल्स युक्त चट्टानों का जमावड़ा है।जो कि ओवरबर्डन न सह पाने वाली चट्टानों का लेसर हिमालयी सीमा क्षेत्र भी है।
  • इस श्रीनगर कलियासौड़ क्षेत्र के नार्थ में 10-15km की दूरी से Main Central Thrust,MCT लाइन गुजर रही है तथा इसके लगभग समानांतर NAT के साउथ में 15-20km की दूरी से Main Boundary Thrust,MBT गुजर रही है साथ ही NAT इन दोनों भ्रंशों को धनुषाकृति में काटती है। अनुमानतः इसी क्षेत्र के नीचे से लगभग 20km नीचे से Main HimalayanThrust ,MHT भी गुजर रही है। ये सब मिलकर श्रीनगर की खड़ी V आकार की ऊपर की ओर उठती घाटी भूगर्भीय दृष्टि से एक ‘जटिल टैक्टोनिक ‘ ढ़ांचा बनाती है।
  • अब अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है कि इतने नाजुक, टैक्टोनिक ली संवेदनशील क्षेत्र से गुजरने वाली रेलवे टनल यदि “भारी विस्फोटकों से निर्मित “की गई हो तो सम्पूर्ण श्रीनगर के आसपास की नाजुक तानेबाने वाली भूगर्भीय चट्टानी संरचना के मद्देनजर कितना जोखिम भरा हो सकता है। इसके परिणाम के तौर पर श्रीनगर गढ़वाल शहर के ठीक ऊपर साउथ दिशा की पहाड़ियों पर बसी बस्तियों के मकान क्षत-विक्षत होकर टूटनी प्रारम्भ हो चुकी हैं और भूमि भी 5-7m नीचे से खिसकती नज़र आ रही है। यही हाल इसी दिशा में आगे चलकर राष्ट्रीय राजमार्ग नं58 पर अवस्थित चौरास पुल के ठीक ऊपर ‘टीचर्स कालोनी ‘ का भी हो गया है। दोनों जगहों की सड़कें घंस रही हैं और बीचोंबीच से सड़क दो फाड़ हो रही है।अतः सुरक्षा मानकों का उलंघन निकट भविष्य में सम्पूर्ण क्षेत्र में चुनौती बन सकती है। जब मैं ‘रिवाडी ‘ क्षेत्र में हो रहे भू धंसाव वाले क्षेत्रों में जिज्ञासावश देखने पहुंचा तो मुझे इस क्षेत्र में माइलोनिटिक चट्टानों के साथ सिस्टोज और नीस के बड़े बड़े टुकड़ेनुमा आउटक्रांंप दिखने को मिली ये संभवतया आसपास की चट्टानों के टुकड़े आये होंगे । प्रायः उफल्डा वाले क्षेत्र में नीस व सिस्ट्चट्टाने प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।
  • श्रीनगर क्षेत्र से होकर बहने वाली गंगा की मुख्य सहायक नदी अलकनंदा राष्ट्रीय राजमार्ग नं58 के समानान्तर बहती है जो कि कलियासौड़ भूस्खलन क्षेत्र के आधार जमावड़े के बिन्दु की मृदा क्षरण की जमावट को अपने साथ तेज बहाव के साथ काटकर व आसपास की अन्य अलकनंदा नदी के किनारे डाली गई हजारों हजार टन मिट्टी व अन्य गाद को प्रत्येक दिन अपने साथ बहाकर ले जा रही है।यही नहीं श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के जलाशय के वजन व हलचल के कारण,फरासू हनुमान मंदिर, के निकट सड़क की बुनियादी चट्टानें व सड़क सुरक्षा दिवाल बुरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है और यह मार्ग अक्सर बंद पड़ने लगा है।
  • ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे टनल जैसे टनल नं10 के क्षेत्र में कमजोर फ्रैक्चर्ड फिलाइट्स और शेल्स चट्टानों के मध्य से मशीनों से खुदाई करके बनाई जा रही है।इन टनलों के निर्माण से चट्टानों में ढलान अस्थिरता उत्पन्न होना और चट्टानों के खिसकने का खतरा बढ़ता चला जाएगा। रेलवे टनल अधिकतर जगहों पर 300m-500mतक का ओवरबर्डन क्षेत्र में तनाव पैदा कर और खुदाई के दौरान की हलचल के कारण जो कम्पन पैदा होती है उससे पहले से ही फ्रैक्चर्ड चट्टानें अस्थिर हो जायेंगी।
  • श्रीनगर से धारी देवी तक बनने वाली रेलवे टनल नं11 जो कि 09km के लगभग लम्बी है। इसका क्षेत्र रेलवे टनलिंग की दृष्टि से सबसे ज्यादा नाजुक व माइलोटोनिक महीन जमावड़े वाले चट्टानों का क्षेत्र है और बडी चट्टानों से टूटे हिस्सों व अन्य खिसककर आये मलवे का हजारों साल पुराना जमावड़ा वाला भू भाग है। रेलवे ने इसी ज़ोन में टनल बनाने के लिए लगातार भारी विस्फोटकों का उपयोग किया।ये विस्फोट सामान्यतया प्रत्येक दिन सुबह 8am तथा सांयकाल के वक्त 6.00pm-7.00pm के लगभग किये जाते रहे हैं।इन विस्फोटों के कारण मुख्य सड़क पर घूमते वक्त तथा घरों में बैठे रहते वक्त भी तीव्र कम्पन व झटके महसूस किए जाते रहे हैं। ये कम्पन नाजुक संरचना वाली व शेयर चट्टानों में नई महीन दरारों को उत्पन्न कर उनमें पानी के अंदरुनी रिसाव को बढ़ाने में सहायक होती हैं और मौजूदा प्राकृतिक जलधाराओं को बंद कर देती हैं। साथ ही साथ ये कम्पन स्थानीय स्ट्रेटोग्राफिक संरचनाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं।वह भी ऐसी स्थिति में कि इस क्षेत्र की चट्टानों का संगठन काफी कमजोर और’ अनसैटल्ड ‘ है।
  • गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में आये प्रमुख भूकम्पों का इतिहास जो उपलब्ध है –
  • 1505 में सेंट्रल हिमालय (8.2 रिक्कटर स्केल अनुमानित) ।
  • 1803 गढ़वाल हिमालय (अनुमानित 7.0-7.9 तीव्रता ) का भूकंप जिससे अलकनंदा नदी का जलप्रवाह रुक गया था और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई और हजारों लोगों की मृत्यु हुई व बड़े पैमाने पर भवनों, मंदिरों को नुकसान पहुंचा।
  • 1883 का गढ़वाल भूकंप।
  • 20अक्टूवर 1991 उत्तरकाशी (6.8 तीव्रता रिक्टर स्केल पर )।
  • 29मार्च 1999 चमोली भूकम्प (6.8 तीव्रता) ।
  • 2015 के नेपाल भूकंप (7.8 तीव्रता) ने गढ़वाल क्षेत्र को भी। प्रभावित किया । MCT ,MBT जैसे भ्रंशों में हलचल के कारण व भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों से टकराव हिमालय में भूकंप आते का कारण है ।
  • सच कहें तो स्थानीय भूमि का स्ट्रेटा “डंपिंग जोन ” की जैसी ही नाजुक है। इस क्षेत्र में जगह-जगह पर लाइमस्टोन व डोलोमेटिक टाइप की मिक्सड लाइमस्टोन युक्त संरचना वाली चट्टानें मौजूद हैं जो कि पानी से अत्यधिक प्रभावित होने वाली प्रकृति की चट्टानों के प्रकार वाली हैं। इतना नाजुक भूसंरचना वाला क्षेत्र होने के बावजूद श्रीनगर जलविद्युत परियोजना की झील का वजन इसी ज़ोन में डाला गया है। इसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर तीन -चार जगहों पर जैसे स्वीत, श्रीकोट नदी किनारे पर तथा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के चौरास फील्ड के किनारे पर किये गये सुरक्षा कार्य।आदि जगहों पर बड़े -बड़े डंपिंग जोन बना दिये गये हैं जो कि परियोजना का प्लान बनाते समय प्लान में नहीं थे जिनके ओवरलोडिंग से स्वीत, श्रीकोट और श्रीनगर गढ़वाल में दुष्परिणाम कभी भी किसी भी दशा में आ सकता है।
https://regionalreporter.in/iit-madras-number-1-for-the-7th-consecutive-time-in-nirf-ranking-2025/
https://youtu.be/jGaRHT7bFcw?si=RHwx3AMLn6WE4hXI
Website |  + posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: