Supreme Court Decision-चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को ट्रांसफर करना, ऑनलाइन देखना अपराध

इंटरनेट पर बिना डाउनलोड किए चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना POCSO ACT के तहत माना जाएगा ‘कब्जा’
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा मद्रास हाई कोर्ट का फैसला
चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को बांटना और फैलाने पर 3 साल तक की सजा/जुर्माना
स्टेट ब्यूरो

चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है कोर्ट ने साफ कर दिया है कि चाइल्ड पॉर्न का ट्रांसफर करना, ऑनलाइन देखना, डाउनलोड करना और अपने पास रखना अपराध की श्रेणी में आता है कोर्ट ने कहा कि यह सब सभी POCSO एक्ट और IT कानून के तहत अपराध है

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मद्रास हाई कोर्ट  के फैसले को पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पॉर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना अपराध ‘नहीं’ है

हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ नाम के NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी याचिका में NGO ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर चिंता जताई थी

NGO के मुताबिक, इस आदेश से लोगों के बीच ऐसी धारणा बनती कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी (Child Pornography) डाउनलोड या रखने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी इससे चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को बढ़ावा मिलता मामले के खिलाफ याचिका को लेकर 11 मार्च को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की थी और हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इंटरनेट पर बिना डाउनलोड किए बाल पोर्नोग्राफी देखना भी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 15 के अनुसार ऐसी सामग्री का “कब्जा” माना जाएगा।

धारा-15 बाल पोर्नोग्राफिक सामग्री को प्रसारित करने के इरादे से संग्रहीत या रखने के अपराध से संबंधित है। निर्णय में यह भी कहा गया कि प्रसारित करने के इरादे का अंदाजा किसी व्यक्ति द्वारा सामग्री को डिलीट करने और रिपोर्ट करने में विफलता से लगाया जा सकता है।

CJI डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच ने संसद को POCSO अधिनियम में संशोधन के लिए एक कानून लाने का सुझाव दिया है। जिसमें ‘child pornography’ शब्द को “Child Sexual Exploitative and Abusive Material” से बदलने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे ‘चाइल्ड पॉर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल न करें। 

जानें क्या था मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी और आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के दायरे में नहीं आता है

न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की पीठ ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने केवल वीडियो डाउनलोड की थी और निजी तौर पर पोर्नोग्राफी देखी थी इसे न तो प्रकाशित किया गया था और न ही दूसरों के लिए प्रसारित किया गया था चूंकि उसने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे अभियुक्त व्यक्ति की ओर से नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

“किसी व्यक्ति द्वारा इंटरनेट पर किसी भी बाल पोर्नोग्राफ़िक सामग्री को देखने, वितरित करने या प्रदर्शित करने आदि का कोई भी कार्य बिना किसी वास्तविक या भौतिक कब्जे या किसी भी उपकरण या किसी भी रूप या तरीके से ऐसी सामग्री के भंडारण के POCSO Act की धारा 15 के अनुसार ‘कब्ज़ा’ माना जाएगा, बशर्ते कि उक्त व्यक्ति ने रचनात्मक कब्जे के सिद्धांत के आधार पर ऐसी सामग्री पर एक अपरिवर्तनीय डिग्री का नियंत्रण किया हो।”

चाइल्ड पॉर्नोग्राफी में सजा

केंद्र सरकार ने 2019 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया था। जिसमें धारा 14 और 15 के मुताबिक, अगर कोई चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को बांटता, फैलाता, या दिखाता है, तो उसे 3 साल तक की सजा/जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

अगर कोई ‘चाइल्ड पॉर्नोग्राफी’ को कमर्शियल उद्देश्य के लिए रखता है, तो उसे कम से कम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। अगर कोई दूसरी बार ये करते हुए पाया जाता है तो सजा पांच-सात साल तक बढ़ाई जा सकती है।

https://regionalreporter.in/prasad-coming-to-kedarnath-dham-should-be-checked/
https://youtu.be/jkIQC6t9hr8?si=w7A9RY47tu_UQ0c5
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