नाबालिग के यौन शोषण मामले में शीर्ष अदालत बोली-ऐसी टिप्पणियां अपराध की गंभीरता को कम नहीं कर सकतीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा ‘रेप के प्रयास’ से जुड़े एक मामले में दी गई टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह खारिज कर दिया है।
शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि किसी नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न जैसे कृत्य को हल्के में नहीं लिया जा सकता
और इसे “रेप के प्रयास नहीं” कहना कानून व संवेदनशीलता दोनों के खिलाफ है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि पीड़िता के स्तन को पकड़ना,
पजामे की डोरी तोड़ना और उसे पुल के नीचे खींचने जैसी हरकतें ‘रेप’ या ‘रेप के प्रयास’ की श्रेणी में नहीं आतीं।
इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि
ऐसे मामलों में IPC की धारा 376 (रेप) और POCSO एक्ट की धारा 18 (रेप का प्रयास) के तहत ही सुनवाई होगी।
कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यौन अपराधों खासतौर पर बच्चों से जुड़े मामलों में न्यायिक टिप्पणियों को लेकर नई गाइडलाइंस बनाई जाएंगी।
अदालत में क्या कहा गया
वरिष्ठ वकीलों ने दलील दी कि अलग-अलग हाईकोर्ट्स से समय-समय पर आई ऐसी टिप्पणियां समाज में गलत संदेश देती हैं।
कोर्ट के सामने यह भी रखा गया कि कुछ मामलों में पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले सवाल पूछे जाते रहे हैं, जो न्याय प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हैं।
क्या था मामला
घटना उत्तर प्रदेश के कासगंज की है (2021)। आरोप है कि नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ की गई,
उसके कपड़ों से छेड़छाड़ हुई और उसे जबरन पुल के नीचे ले जाने की कोशिश की गई।
निचली अदालत ने IPC 376 और POCSO 18 के तहत केस चलाया था,
जिसे हाईकोर्ट ने सीमित धाराओं तक कर दिया था, अब सुप्रीम कोर्ट ने वह फैसला पलट दिया है।
शीर्ष अदालत का संदेश स्पष्ट है बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में नरमी नहीं चलेगी,
और टिप्पणियां ऐसी होंगी जो पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करें।

















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