सभी शैक्षणिक संस्थानों के लिए देशव्यापी दिशा-निर्देश जारी
सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए देशभर के शैक्षणिक संस्थानों और कोचिंग सेंटरों के लिए पैन इंडिया दिशा-निर्देश (All-India Guidelines) जारी किए हैं।
कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ नीति नहीं, बल्कि छात्रों के जीवन, स्वास्थ्य और सम्मान के अधिकार से जुड़ा एक संवैधानिक कर्तव्य है।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का असली मकसद छात्रों को समझदार, आत्मविश्वासी और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए तैयार करना है। सिर्फ ग्रेड और रैंकिंग पर जोर देना छात्रों पर मानसिक दबाव डालता है।
प्रतियोगी परीक्षाएं छात्रों पर भारी मानसिक दबाव बना रहीं
बेंच ने बताया कि कोटा, जयपुर, सीकर, हैदराबाद, दिल्ली (NCR) और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में जहां बड़ी संख्या में छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, वहां मानसिक दबाव की वजह से आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े हैं।
मानसिक स्वास्थ्य भी मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 21
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि मानसिक स्वास्थ्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है। सम्मान और मानसिक सुख के बिना जीवन अधूरा है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए ये अहम निर्देश
- शैक्षणिक संस्थानों और कोचिंग सेंटरों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
- हर संस्थान में छात्रों के लिए परामर्शदाता (काउंसलर) या मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध होनी चाहिए।
- छात्रों पर रैंकिंग, ग्रेड या अति-प्रतिस्पर्धा का दबाव कम किया जाए।
- सीखने की खुशी और समझ को प्राथमिकता दी जाए, सिर्फ परिणाम नहीं।
- सरकार को आत्महत्या रोकने के लिए एकीकृत और लागू करने योग्य कानून और नीति बनानी होगी।
यह फैसला उस मामले में आया जिसमें आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में NEET की तैयारी कर रहे 17 साल के छात्र की मौत हुई थी। पहले हाई कोर्ट ने CBI जांच से इनकार कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब CBI को जांच सौंप दी और तुरंत कार्रवाई का आदेश दिया।

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