उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को छह माह के भीतर कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मियों के नियमितीकरण संबंधी नियम बनाने के आदेश दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेन्द्र और जस्टिस आलोक मेहरा की खंडपीठ ने यह निर्देश नर्सिंग कॉलेज के एक असिस्टेंट प्रोफेसर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
कोर्ट ने कहा कि सरकार फिलहाल कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्पष्ट नीति तैयार करने की दिशा में काम कर रही है।
छह माह के भीतर नियमितीकरण संबंधी नियम बनाए जाएं और उस आधार पर याचिकाकर्ता समेत अन्य कर्मचारियों के भविष्य पर निर्णय लिया जाए।
याचिकाकर्ता का मामला
देहरादून स्थित स्टेट नर्सिंग कॉलेज में मयंक कुमार जामिनी वर्ष 2010 से लेक्चरर (अब असिस्टेंट प्रोफेसर) पद पर कॉन्ट्रैक्ट आधार पर कार्यरत हैं।
वे लगातार 15 वर्षों से बिना रुकावट सेवा दे रहे हैं। इस दौरान उनका पदनाम भी लेक्चरर से बदलकर असिस्टेंट प्रोफेसर कर दिया गया।
जामिनी का कहना है कि वे सभी शैक्षिक योग्यताओं और अनुभव की शर्तों को पूरा करते हैं, फिर भी उन्हें नियमित नहीं किया गया। इतना ही नहीं, समान कार्य के बावजूद उन्हें समान वेतन भी नहीं दिया गया।
हाल ही में 14 जुलाई 2025 को सरकार ने असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 पदों का विज्ञापन निकाला, जिसमें उनका पद भी शामिल था। विज्ञापन में न तो उम्र सीमा में छूट दी गई और न ही लंबे अनुभव का कोई लाभ दिया गया।
कोर्ट से राहत
खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जब तक सरकार नियम नहीं बना लेती, तब तक याचिकाकर्ता अपनी सेवा पर बने रहेंगे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विज्ञापन के तहत संबंधित पद को फिलहाल खाली रखा जाए।
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि विज्ञापन नियमों के अनुरूप जारी किया गया है। साथ ही यह भी जानकारी दी कि मुख्यमंत्री की घोषणा और कैबिनेट निर्णय के बाद एक सात सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है, जो कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मियों के नियमितीकरण पर विचार करेगी।
हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार छह माह के भीतर स्पष्ट नियम बनाए और उसी आधार पर याचिकाकर्ता और अन्य कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाए। तब तक याचिकाकर्ता को सेवा से न हटाया जाए।
कोर्ट के इस आदेश ने लंबे समय से नियमितीकरण की राह देख रहे हज़ारों कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मियों को उम्मीद की नई किरण दी है।













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