अभिषेक रावत
हिमालय की गोद में फलते- फूलते प्राकृतिक जंगलों में कई तरह के फल पाए जाते है। ये फल न सिफ बेहद स्वादिष्ट होते हैं बल्कि औषधीय गुणों की खान भी है। इन्हीं फलों में एक फल है-काफल।
मई से जून के महीने में हिमालय के जंगलों में पककर तैयार होने वाला एक लोकप्रिय पहाड़ी फल है ‘काफल’। यह एक सदाबहार वृक्ष है। गर्मी के मौसम में काफल के पेड़ पर काफी स्वादिष्ट फल लगता है गर्मियों में पहाड़ की सैर पर आने वाले सैलानी बहुत सी हसरतें पाले रहते हैं, उनमें से एक होती है काफल खाना।
दरअसल मैदानों में रहने वाले लोगों को काफल काफी पसंद है काफल एक ऐसा जंगली फल है जिसका बाहरी रसदार गूदा इसके बीज की तुलना में बहुत ज्यादा मामूली होता है। लाल रसदार गूदा खुद के भीतर ज्यादा जगह घेरे गुठली के बाहर चिपका होता है।
इसी बनावट की वजह से इसे बहुत दिनों तक सुरक्षित रखा नहीं जा सकता, लिहाजा ज्यादा दूरी तक भी नहीं ले जाया जा सकता। इसी वजह से इसे खाना हो तो पहाड़ ही आना पड़ता है।
काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेटा है। यह उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत हिमालय के तलहटी क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। ग्रीष्मकाल में इस पर लगने वाले फल पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
इसकी छाल का प्रयोग चर्मशोधन के लिए किया जाता है।
काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है एवं हृदय रोग, मधुमेय, उच्च एंव निम्न रक्तचाप का नियंत्रित करता है। इस फल में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होने के कारण काफल अल्सर, दस्त एनीमिया, गले में खराश, बुखार आदि कई बीमारियों के इलाज में का एक तरीका है।
ग्रीष्म ऋतु का यह बहुमूल्य फल स्वादिष्ट होने के साथ ही आयुर्वेद में बेहद उपयोगी साबित हुआ है इसीलिए स्थानीय लोग काफल से चटनी भी बनाया करते हैं।
बढ़ते पलायन के चलते उत्तराखण्ड के अधिकाधिक लोग गांव छोड़ देहरादून तथा अन्य मैदानी इलाकों में पलायित हो चुके हैं। लेकिन काफल चखने का मोह उन्हें काफल पाने के लिए आर्कषित करता है। यही कारण है कि इस वर्ष पहाड़ के बाजारों में काफल बेचने वाले ग्रामीणों की टोल तो दिखी ही, देहरादून तथा हल्द्वानी बाजारों में भी कुंतलों काफल बिकता दिखाई दिया।
