उत्तराखंड की बकरी की नई नस्ल ‘चौगरखा’ पंजीकृत

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की नस्ल पंजीकरण समिति द्वारा पंजीकृत

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) मुक्तेश्वर व गोविंद बल्लभ पंत प्रौद्योगिकी एवं कृषि विद्यालय पंतनगर के प्रयासों से उत्तराखंड की बकरी की नई नस्ल चौगरखा का भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की नस्ल पंजीकरण समिति द्वारा पंजीकरण किया है। आईवीआरआई के वैज्ञानिकों ने इस पर खुशी व्यक्त जताई है।

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान मुक्तेश्वर वर्ष 2014 से चौगरखा बकरी पर अखिल भारतीय बकरी सुधार समन्वय परियोजना के अंतर्गत शोध कार्य कर रहा है।

चौगरखा एक मध्यम आकार की बकरी की प्रजाति है, जो कुमाऊं क्षेत्र के विभिन्न पर्वतीय जिलों जैसे कि चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर व अल्मोड़ा में समुद्र तल से 1000 से 2200 मी तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।

आईवीआरआई मुक्तेश्वर के संयुक्त निदेशक डा. यशपाल सिंह मलिक ने बताया कि, चौगरखा बकरी प्रजाति समशीतोष्ण तथा शीतोष्ण पर्वतीय क्षेत्रों के उबड़-खाबड़ इलाकों पर पालने हेतु अच्छी तरह से अनुकूलित होती है।

वही इसका लालन-पालन काफी कम लागत में भी किया जा सकता है। चौगरखा का ब्रीडिंग ट्रेक्ट अल्मोड़ा के चितई से दनिया क्षेत्र की चौगरखा पट्टी में है। जिससे इस बकरी का नाम चौगरखा रखा गया है।

चौगरखा मुख्य रूप से हल्की भूरे, काले तथा सफेद तीन रंगों में पाई जाती है तथा इस प्रजाति की बकरी के चेहरे के दोनों तरफ तथा पैरों पर अलग रंग की पट्टियां पायी जाती हैं।

उन्होंने बताया कि चौगरखा बकरी को किसान मुख्य रूप से मांस के उद्देश्य से पालते हैं। वैज्ञानिक तरीके से – प्रबंधन करने पर चौगरखा बकरी के वयस्क न नर व मादा पशु का वजन क्रमशः लगभग 45 एवं 35 किलो तक देखने को मिलता है। जिससें किसान एक व्यस्क बकरी में 21 हजार 36 हजार तक की आय अर्जित कर सकता है।

वर्तमान में कुछ गांवों में संस्थान चौगरखा बकरी को लेकर कार्य कर रहा है। अच्छे परिणाम के बाद विस्तार किया जाएगा। वर्तमान में आईवीआरआई मुक्तेश्वर में चौगरखा बकरियों की शुद्ध नस्ल के लगभग 170 पशु संरक्षित किए गए है, जिनकी उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कार्य कर रहे हैं।

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