उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर चुनावी गतिविधियां जोरों पर थीं, लेकिन अब चुनाव चिन्ह आवंटन की प्रक्रिया पर अचानक ब्रेक लग गया है।
उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद निर्वाचन आयोग ने चिन्ह आवंटन पर सोमवार दोपहर 2 बजे तक रोक लगा दी है। इसके पीछे मतदाता सूची और आरक्षण विवाद की न्यायिक समीक्षा को आधार बनाया गया है। इस निर्णय ने प्रदेश की चुनावी राजनीति में हलचल मचा दी है।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप: निष्पक्षता की दिशा में कदम
शक्ति सिंह बर्थवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बड़ा निर्देश दिया है। याचिका में कहा गया कि पंचायत राज अधिनियम 2016 की धारा 9(6) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति का नाम एक से अधिक मतदाता सूचियों में है, तो वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा।
कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से स्पष्ट कहा कि जब तक मतदाता सूची और आरक्षण विवादों की न्यायिक समीक्षा पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी उम्मीदवार या पार्टी को चुनाव चिन्ह आवंटित न किया जाए।
इस रोक के चलते राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को अब प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। कई प्रत्याशी पहले ही अपने प्रचार अभियान में चुनाव चिन्ह का उपयोग कर रहे थे। इस फैसले से:
- प्रचार रणनीतियां प्रभावित हुई हैं।
- कई उम्मीदवारों को अपने प्रचार सामग्री में बदलाव करना पड़ सकता है।
- ब्लॉक स्तर पर समीकरणों में भी परिवर्तन की संभावना बन गई है।
विपक्ष का हमला
निर्वाचन आयोग के इस निर्णय को लेकर कांग्रेस ने सत्तारूढ़ बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि बीजेपी ने पंचायत चुनाव को “राजनीतिक मजाक” बना दिया है।
उन्होंने कहा कि कई उम्मीदवार ऐसे हैं जिनका नाम दो-दो जिलों और निकाय-पंचायत दोनों मतदाता सूचियों में है, जो नियमों के खिलाफ है। कांग्रेस का आरोप है कि आयोग ने ऐसे उम्मीदवारों के नामांकन रद्द न करने के आदेश देकर कानून का उल्लंघन किया है।
धस्माना ने कहा कि कांग्रेस पहले ही 23 जून को राज्य निर्वाचन आयुक्त से मिलकर इस मुद्दे पर आपत्ति जता चुकी थी, लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली।
कांग्रेस अब इस मामले को लेकर राज्यपाल से मिलकर राज्य निर्वाचन आयुक्त को उनके पद से हटाने की मांग करेगी। पार्टी प्रतिनिधिमंडल जल्द ही राजभवन जाकर ज्ञापन सौंपेगा।