बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी खुद कमाती है, उसे गुजारा भत्ते (maintenance) से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी को वह जीवन स्तर बनाए रखने का अधिकार है, जैसा उसने शादी के बाद पाया था।
क्या है मामला
पति ने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी को ₹15,000 प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था। इस कपल की शादी 2012 में हुई थी। पति के मुताबिक, पत्नी 2015 से अपने माता-पिता के घर रह रही है। उसका दावा है कि पत्नी के व्यवहार की वजह से रिश्ते खराब हुए।
पत्नी की याचिका
पत्नी ने 2021 में भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने अगस्त 2023 में पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ पति ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की।
पति की ओर से दलील दी गई कि पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती है और उसे हर महीने ₹21,000 मिलते हैं। साथ ही वह ट्यूशन से भी सालाना ₹2 लाख तक कमा लेती है। इस आधार पर पति ने कहा कि पत्नी को भत्ते की ज़रूरत नहीं है।
पत्नी ने कोर्ट को बताया कि पति एक बड़ी कंपनी में सीनियर मैनेजर है और अच्छी आय अर्जित करता है। वहीं वह खुद कम आमदनी के चलते अपने माता-पिता और भाई के साथ रह रही है और स्वतंत्र रूप से जीवन यापन नहीं कर सकती।
कोर्ट का फैसला
जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने कहा कि पत्नी की कमाई उसके भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने यह भी माना कि पत्नी लंबी दूरी तय कर नौकरी करती है और वह अपने माता-पिता के घर हमेशा नहीं रह सकती।
कोर्ट ने यह देखा कि पति की आय पत्नी से कहीं ज्यादा है और उस पर कोई अतिरिक्त वित्तीय ज़िम्मेदारी भी नहीं है। ऐसे में पत्नी को गुजारा भत्ता देना जरूरी है। इसलिए फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा गया।