हर वर्ष 3 मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिन स्वतंत्र पत्रकारिता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और पत्रकारों की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करता है।
इस दिवस की शुरुआत 1991 में नामीबिया की राजधानी विंडहोक में आयोजित एक सम्मेलन से हुई थी, जहां ‘विंडहोक घोषणा’ पारित की गई।
यह घोषणा स्वतंत्र, निष्पक्ष और विविध मीडिया के लिए एक ऐतिहासिक कदम थी। इसी की स्मृति में 3 मई को यह दिवस मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1993 में इस दिवस को आधिकारिक मान्यता दी थी। इसे पहली बार 1994 में मनाया गया था।
भारत में 4 जुलाई, 1966 को प्रेस परिषद की स्थापना हुई। इसके अलावा भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी माना जाता है और हर साल 16 नवंबर को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ भी मनाया जाता हैं।
इस दिन का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और श्रद्धांजलि देना है। उन पत्रकारों के लिए जिन्होंने कर्तव्य निभाते हुए अपनी जान गंवाई है।
विश्वभर में पत्रकारों को सेंसरशिप, धमकियों, गिरफ़्तारियों और यहां तक कि जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ता है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में सैकड़ों पत्रकार मारे गए हैं, जिनमें से अधिकांश मामलों में न्याय नहीं हो पाया।
अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वैश्विक आधार
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है, किंतु अभियक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन हैं।
भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरे की स्थिति में, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में, न्यायालय की अवमानना की स्थिति में इस अधिकार को बाधित किया जा सकता है।
भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता प्राप्त है। प्रेस/पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही है इसलिये अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
अनुच्छेद 19 (a) (Article 19) इस दिवस की मूल भावना को दर्शाता है। यह अनुच्छेद कहता है:
“हर व्यक्ति को राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है; इसमें बिना किसी हस्तक्षेप के राय रखने और किसी भी माध्यम से और सीमाओं की परवाह किए बिना जानकारी और विचार प्राप्त करने, प्राप्त करने और प्रसारित करने की स्वतंत्रता शामिल है।”
यह अनुच्छेद प्रेस की स्वतंत्रता का कानूनी और नैतिक आधार प्रदान करता है, जिसे दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों ने अपने संविधान और कानूनों में शामिल किया है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2024 में भारत की स्थिति
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा प्रकाशित विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2024 में भारत की स्थिति चिंताजनक रही। भारत को 159वें स्थान पर रखा गया है, जो देश में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए खतरनाक वातावरण की ओर संकेत करता है। पत्रकारों को कई बार राजनीतिक दबाव, हिंसा, ट्रोलिंग और कानूनी दमन का सामना करना पड़ता है।
भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। हालांकि, हाल के वर्षों में कई पत्रकारों ने सरकारी नीतियों की आलोचना करने पर दमन का अनुभव किया है। इसके बावजूद अनेक पत्रकार निष्पक्षता और सच्चाई के साथ अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
