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सरोकारों से साक्षात्कार

सीटू उत्तराखंड का 9वां राज्य सम्मेलन

मज़दूरों, युवाओं, स्कीम वर्करों और कर्मचारियों के अधिकारों की लड़ाई को तेज़ करने का संकल्प

मज़दूर-विरोधी नीतियों, बढ़ती महँगाई, ठेका-प्रथा और लेबर कोड के खिलाफ व्यापक जनसंघर्ष संगठित करने के आह्वान के साथ सीटू उत्तराखंड का 9वां राज्य सम्मेलन 29–30 नवम्बर को बौराड़ी, नई टिहरी में सम्पन्न हुआ। दो दिवसीय सम्मेलन में प्रदेश भर से आए डेलीगेट, स्कीम-वर्कर, ठेका-कर्मचारी, औद्योगिक मज़दूर और युवा प्रतिनिधि शामिल हुए।

इस बार सम्मेलन का केंद्रीय नारा

“अधिकारों की रक्षा, 26,000 रुपये न्यूनतम वेतन, स्थायी रोज़गार और निजीकरण-लेबर कोड के खिलाफ संघर्ष।”

नई राज्य कार्यकारिणी का गठन

सम्मेलन में 41 सदस्यीय नई राज्य कार्यकारिणी का चुनाव हुआ।

  • अध्यक्ष: कामरेड एम.पी. जखमोला
  • महामंत्री: कामरेड राजेंद्र सिंह नेगी
  • कोषाध्यक्ष: कामरेड मनमोहन सिंह
  • उपाध्यक्ष, सचिव और अन्य सदस्यों सहित 15 सदस्यीय सचिव मंडल भी चुना गया।

नई टीम को प्रदेशभर में स्कीम-वर्करों, ठेका-मज़दूरों, सेवा-क्षेत्र कर्मियों और बेरोज़गार युवाओं को संगठित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सौंपी गई।

बेरोज़गारी पर कड़ा प्रस्ताव

सम्मेलन ने कहा कि नवउदारवादी नीतियों और निजीकरण-प्रधान आर्थिक ढाँचे ने देश को रोज़गार-विहीन विकास की ओर धकेल दिया है। नोटबंदी, जीएसटी और ठेका-प्रथा ने करोड़ों लोगों की नौकरियाँ छीनीं, जिनका असर उत्तराखंड पर भी गहरा पड़ा है।

मुख्य तथ्य:

  • प्रदेश के लगभग 18% युवा बेरोज़गार बताए गए।
  • विभागों में 57,000 से अधिक पद रिक्त, पर नियमित भर्तियाँ रुकी हुई।
  • मनरेगा में 100 दिन के बजाय सिर्फ 20–30 दिन काम मिल रहा।

मुख्य माँगें:

  • काम का अधिकार मौलिक अधिकार बनाया जाए।
  • रोजगार मिल जाने तक बेरोज़गारी भत्ता
  • विभागों में रिक्त पदों पर तुरंत स्थायी भर्ती
  • मनरेगा में 200 दिन काम और समय पर भुगतान
  • नशे और माफियाई नेटवर्क के खिलाफ कड़ी कार्रवाई।

स्कीम-वर्करों को कर्मचारी का दर्जा देने की मांग

सम्मेलन में कहा गया कि आंगनबाड़ी, आशा, मिड-डे-मील आदि योजनाओं को चलाने वाली महिलाएँ बेहद कम मानदेय में अत्यधिक काम कर रही हैं, जबकि सरकारें उन्हें “स्वयंसेवक” बताकर उत्तरदायित्व से बच रही हैं।

मुख्य माँगें:

  • सभी स्कीम वर्करों को औपचारिक कर्मचारी का दर्जा
  • कम से कम 26,000 रुपये मासिक वेतन और सभी श्रम अधिकार।
  • ओवरटाइम, सामाजिक सुरक्षा, मातृत्व लाभ और नियमित सेवा-शर्तें।

ठेका-आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण पर बड़ा प्रस्ताव

सीटू ने कहा कि “स्थायी काम पर अस्थायी कर्मी” की नीति ने भ्रष्टाचार और असुरक्षा को बढ़ाया है।
सुप्रीम कोर्ट के “समान काम के लिए समान वेतन” आदेश को तुरंत लागू करने की मांग दोहराई गई।

मुख्य माँगें:

  • सभी विभागों में ठेका-आउटसोर्स व्यवस्था समाप्त हो।
  • वर्तमान कर्मचारियों का चरणबद्ध नियमितीकरण
  • नियमितीकरण से पहले भी सभी को समान वेतन और सुविधाएँ
  • न्यूनतम 26,000 रुपये वेतन और समय पर भुगतान की गारंटी।

महँगाई के खिलाफ प्रस्ताव

सम्मेलन ने कहा कि कच्चे तेल के दाम घटने के बावजूद भारी करों के कारण पेट्रोल-डीज़ल महँगा है, जिससे परिवहन और खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़े हुए हैं।

मुख्य माँगें:

  • ईंधन पर करों में कटौती
  • जमाखोरों-कालाबाज़ारियों पर कड़ी कार्रवाई।
  • पीडीएस को मजबूत कर 2 रुपये प्रति किलो पर 35 किलो राशन
  • आवश्यक वस्तु कानूनों में किए संशोधन वापस लिए जाएँ।

लेबर कोड का पुरजोर विरोध

सम्मेलन ने कहा कि नए लेबर कोड “Ease of Doing Business” नहीं बल्कि
“Ease of Doing Exploitation” साबित हो रहे हैं।

मुख्य माँगें:

  • सभी 4 लेबर कोड रद्द हों।
  • यूनियन, हड़ताल, सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार संरक्षित हों।
  • बिना मज़दूर संगठनों से परामर्श किए कोई नया प्रावधान लागू न हो।

आने वाले समय की कार्ययोजना

सम्मेलन ने प्रदेश में व्यापक जनसंघर्ष की योजना बनाई

  • हर जिले-ब्लॉक-कारखाने-विभाग में सदस्यता विस्तार।
  • बेरोज़गारी, महँगाई और निजीकरण के खिलाफ संयुक्त अभियान।
  • छात्र-युवा संगठनों के साथ साझा आंदोलन।
  • नशाखोरी, खासकर “चिट्टा” के खिलाफ सामाजिक मोर्चा।
  • लोकतांत्रिक अधिकारों और संविधान की रक्षा हेतु एकजुट संघर्ष।

सम्मेलन ने विश्वास जताया कि संगठित मज़दूर-वर्ग ही प्रदेश के श्रमिकों, स्कीम-वर्करों, किसानों और युवाओं के बेहतर भविष्य की गारंटी दे सकता है।

https://regionalreporter.in/virat-kohli-century-vs-south-africa-52nd-odi-hundred/
https://youtu.be/YRWlr0OJc7M?si=DABCTahJkrHX3Shk
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