हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि प्रशासन ने विश्वविद्यालय को मिलने वाली $2.2 बिलियन की संघीय फंडिंग को अवैध रूप से रोक दिया। यह फंडिंग मेडिकल, विज्ञान और तकनीकी शोध जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपयोग हो रही थी।
जानें क्या है मामला
इस महीने की शुरुआत में ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर कुछ शर्तें थोप दी थीं जिसमें कहा गया था कि, वे कैंपस में बढ़ रहे फिलीस्तीनी समर्थन और यहूदी विरोध भावनाओं पर रोक लगाएं साथ ही ये मांग भी की गई थी कि यूनिवर्सिटी की प्रवेश नीतियों में बदलाव किया जाए।
इसके अलावा कुछ अन्य मांगे भी शामिल
- यूनिवर्सिटी कैंपस में फेस मास्क पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
- कैंपस में डायवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूजन (DEI) प्रोग्राम जैसे कार्यक्रम बंद किए जाने चाहिए।
- यूनिवर्सिटी को हिंसा, उत्पीड़न या आपराधिक गतिविधि वाले स्टूडेंट ग्रुप्स या क्लबों को मान्यता या फंडिंग देना बंद कर देना चाहिए।
- यूनिवर्सिटी को विरोध प्रदर्शन के दौरान कैंपस पर कब्जा करने वाले छात्रों को निलंबित करना चाहिए।
हार्वर्ड ने इन शर्तों को असंवैधानिक मानते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने $2.2 बिलियन की फंडिंग को फ्रीज कर दिया और भविष्य में और फंडिंग रोकने की धमकी दी।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष, ऐलन गार्बर, ने कहा कि यह कार्रवाई विश्वविद्यालय की शैक्षिक स्वतंत्रता और संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार का हस्तक्षेप अमेरिकी उच्च शिक्षा की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकता है।
यह मुकदमा संघीय सरकार और विश्वविद्यालयों के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करता है, जो शैक्षिक स्वतंत्रता और सरकारी हस्तक्षेप के बीच संतुलन की चुनौती को दर्शाता है।
यदि हार्वर्ड इस मामले में जीतता है, तो यह विश्वविद्यालयों को सरकारी हस्तक्षेप से बचाने का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। दूसरी ओर, अगर अदालत प्रशासन के पक्ष में फैसला देती है, तो यह सरकारी नियंत्रण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ सकता है।