50,000 लोगों को “रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता”
उत्तराखंड के हल्द्वानी में बनभूलपुरा रेलवे भूमि विवाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में गरमा गया है, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के उस आदेश को अस्थायी रूप से रोके रखा है, जिसमें अतिक्रमण हटाने और भारी संख्या में परिवारों को विस्थापित करने का निर्देश था।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि यह केवल कानूनी मसला नहीं, बल्कि एक मानवता का प्रश्न है — “50,000 लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता।”
मामला सैकड़ों मकानों, धार्मिक स्थलों और सार्वजनिक संस्थाओं से जुड़ा हुआ है। हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे जमीन पर लगभग 4,000–4,300 परिवार रहते हैं, जहां चार सरकारी स्कूल, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), और कई धार्मिक संरचनाएँ बनी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने न सिर्फ हाईकोर्ट के खारिज आदेश पर रोक लगाई है, बल्कि केंद्र और राज्य सरकार को यह निर्देश भी दिया है कि वे प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास योजना तैयार करें।
हाईकोर्ट ने पहले यह आदेश दिया था कि एक सप्ताह की नोटिस के बाद अतिक्रमण हटा दिए जाएं, जिसे कई परिवारों ने चुनौती दी है, यह तर्क देते हुए कि उनकी जमीन पर वैध दावे हैं और उन्हें कहीं न्याया नहीं मिला है।
अब, 2 दिसंबर को निर्धारित अगली सुनवाई काफी संवेदनशील मानी जा रही है क्योंकि इस फैसले से न सिर्फ ज़मीन का अधिकार तय होगा, बल्कि हज़ारों लोगों की जिंदगी और उनका भविष्य भी दांव पर है।








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