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हाईकोर्ट ने कॉर्बेट सफारी लॉटरी में स्थानीयों के साथ भेदभाव पर जताई चिंता

कोर्ट ने पार्क प्रशासन को पारदर्शी नीति अपनाने और दस दिन में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में सफारी जिप्सियों के पंजीकरण और लॉटरी प्रक्रिया में स्थानीय लोगों के साथ कथित भेदभाव पर कड़ा रुख अपनाया है।

न्यायालय ने कहा कि स्थानीय युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से बनाई गई प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का पक्षपात स्वीकार्य नहीं है।

कोर्ट ने पार्क प्रशासन को दस दिन के भीतर सभी विवरणों के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

सुनवाई में क्या हुआ

बुधवार को हुई सुनवाई में पार्क निदेशक राहुल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट के सामने पेश हुए। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता ने दावा किया कि प्रशासन कुछ खास श्रेणी के जिप्सी मालिकों को ही पंजीकरण का लाभ दे रहा है।

पिछले दो साल से कम पुराने वाहनों को लॉटरी में शामिल होने से वंचित रखा जा रहा है।

याचिकाकर्ता चक्षु करगेती, सावित्री अग्रवाल और अन्य स्थानीय निवासियों ने कोर्ट को बताया कि उनके वाहन पूरी तरह वैध हैं, सभी आरटीओ परमिट मौजूद हैं और वे सभी शर्तें पूरी करते हैं।

इसके बावजूद उन्हें जानबूझकर बाहर रखा जा रहा है। इससे पुराने जिप्सी चालक बेरोजगार हो रहे हैं और नए स्थानीय युवाओं को भी रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं।

सरकारी पक्ष ने कोर्ट में कहा कि पंजीकरण केवल उन वाहनों को दिया गया है जो निर्धारित मानकों को पूरा करते हैं और जो मानक पूरे नहीं करते, उन्हें बाहर रखना उचित है।

कोर्ट का रुख और निर्देश

मुख्य न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने पार्क निदेशक से सवाल किया कि जब उद्देश्य स्थानीय युवाओं को रोजगार देना है, तो नए और पुराने पंजीकृत वाहन मालिकों के बीच भेदभाव क्यों किया जा रहा है।

कोर्ट ने संकेत दिया कि पार्क प्रशासन को पारदर्शी नीति अपनानी होगी और सभी पात्र स्थानीय लोगों को समान अवसर देना होगा।

खंडपीठ ने पार्क निदेशक को निर्देश दिया कि वह दस दिन के भीतर पूरी जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करें। अगली सुनवाई इसी मामले में होगी।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में सफारी जिप्सियों की लॉटरी प्रक्रिया स्थानीय युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से लागू की गई थी।

पिछले कुछ वर्षों में शिकायतें बढ़ी हैं कि नियमों का पालन ठीक से नहीं हो रहा और कुछ मालिकों को वरीयता दी जा रही है। उच्च न्यायालय पहले भी पारदर्शिता सुनिश्चित करने और रोजगार के अवसरों में पक्षपात न करने का निर्देश दे चुका है।

https://regionalreporter.in/kerala-challenges-sir-process-in-supreme-court/
https://youtu.be/kYpAMPzRlbo?si=j9_aciELGaa2tHyv
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