रीजनल रिपोर्टर

सरोकारों से साक्षात्कार

समाचार पत्र और पत्रिकाओं के संपादकीय याद आते हैं…

डा अतुल शर्मा

स्वतंत्रता संग्राम से आज तक यादगार संपादकीय

समाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर पत्र-पत्रिकाओं के संपादकीय हमेशा यादगार रहे हैं।

वे केवल खबर नहीं, बल्कि एक दस्तावेज़ और विचारों का प्रमाण भी बन गए हैं।

संग्राम के समय, जब ब्रिटिश सरकार अखबार जब्त कर देती थी, तब भी संपादक समझौता नहीं करते थे।

पत्रकारिता उनके लिए केवल पेशा नहीं, बल्कि मिशन थी।

गुलामी के दौर के उदाहरण

गुलामी के समय के कई उदाहरण इसके प्रमाण हैं।

सहारनपुर के नया जीवन प्रेस के पंडित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर पर विकास प्रेस पर प्रतिबंध लगाया गया।

गढ़वाल में संपादकाचार्य विशम्भर दत्त चंदोला के गढ़वाली अखबार के साथ भी यही हुआ।

सैकड़ों उदाहरण हैं, जिनसे यह साबित होता है कि पत्रकारिता केवल सूचना नहीं,

बल्कि सत्य और स्वतंत्रता का पक्षधर थी।

आज़ादी के बाद संपादकीय का महत्व

आज़ादी के बाद भी पत्र-पत्रिकाओं के संपादकीय पढ़े जाते रहे।

वे न केवल समाचार बताते थे, बल्कि विचार विमर्श और सामाजिक जागरूकता भी फैलाते थे।

हिंदी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में संपादक अपनी मिशन भावना को जारी रखते रहे।

प्रमुख संपादकों का योगदान

कुछ प्रमुख नाम जो आज भी याद किए जाते हैं:

  • रघुवीर सहाय – टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रिका दिनमान
  • सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय – नवभारत टाइम्स
  • प्रभाष जोशी – जनसत्ता
  • धर्मवीर भारती – धर्मयुग

इसके अलावा भी कई संपादक और पत्रिकाएं इस परंपरा को आगे बढ़ाती रही हैं।

उन्होंने समय-समय पर पत्रकार होने का दायित्व निभाया और समाज में जागरूकता बढ़ाई।

https://regionalreporter.in/preparations-underway-to-give-world-recognition-to-nayar-valley/
https://youtu.be/0DniHzFeUhE?si=Ttf0WtW-ROaNYecu
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