सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार, 16 अक्तूबर को न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई गई है। न्याय की देवी की मूर्ती की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। यह मूर्ति सुप्रीम कोर्ट में जजों के पुस्तकालय में लगाई गई है।
क्या है नई मूर्ति में खासियत
न्याय की नई मूर्ति सफेद रंग की है और प्रतिमा में न्याय की देवी को भारतीय वेषभूषा में दर्शाया गया है। वह साड़ी में दर्शाई गई हैं। न्याय की मूर्ति के सिर पर सुंदर का मुकुट भी है, माथे पर बिंदी, कान और गले में पारंपरिक आभूषण भी नजर आ रहे हैं। इसके अलावा न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू है तो वहीं दूसरे हाथ में संविधान पकड़े हुए दिखाया गया है।
नई मूर्ति दे रही है यह संदेश
न्याय की देवी की नई मूर्ति संदेश दे रही है कि न्याय अंधा नहीं है। वह संविधान के आधार पर काम करता है। बता दें कि, न्याय की देवी की नई मूर्ति चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर लगाई गई है। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि ऐसी और मूर्तियां भी लगाई जाएगी या नहीं।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर नई प्रतिमा लगाई गई है। CJI मानते हैं कि कानून अंधा नहीं है बल्कि कानून सभी को समान मानता है। इसी कारण आंखों से पट्टी हटाई गई है। CJI का मानना है कि प्रतिमा के एक हाथ में संविधान होना चाहिए, तलवार नहीं ताकि देश को संदेश जाए कि वह संविधान के हिसाब से न्याय करती है।
तलवार हिंसा का प्रतीक है, लेकिन अदालतें संवैधानिक कानूनों के हिसाब से न्याय करती हैं। इसके अलावा इसे औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। ठीक वैसे ही जैसे भारतीय दंड संहिता जैसे औपनिवेशिक कानूनों की जगह भारतीय न्याय संहिता लाकर किया गया है। लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति में बदलाव करना भी इसी कड़ी के तहत उठाया कदम माना जा सकता है।
जानें आंखों पर बंधी पट्टी और तराजू का मतलब
न्याय की देवी के प्राचीन यूनान और प्रचीन मिस्र की सभ्यताओं में इसके सबूत मिलते हैं। यूनान की सभ्यता में थेमिस को कानून, व्यवस्था और न्याय की देवी कहा जाता था। वहीं मिस्र की सभ्यता में इस तरह की देवी का नाम मात था। रोम में भी ऐसी ही देवी का जिक्र मिलता है नाम जस्टिलिया था।
आंखों पर बंधी पट्टी ये दिखाती है कि कानून निष्पक्ष है और केवल सबूतों के आधार पर अपना काम करता है। वो ये नहीं देखता कि सामने वाला व्यक्ति प्रभावशाली है या वंचित। वो सबको बराबर मानता है। ऐसा कहा जाता है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी हमेशा से नहीं बंधी थी। 16वीं शताब्दी के बीच से ऐसा होना शुरू हुआ।
वहीं तलवार का मतलब है कानून का सम्मान। मतलब, अदालत अपने फैसले के साथ खड़ी रहेगी। अगर अदालत के फैसले को किसी ने बदलने की कोशिश की तो अदालत बल का इस्तेमाल करेगी। इसका मतलब है कि अदालत दोषी को सजा देगी और जरूरत पड़ने पर निर्दोष की रक्षा भी करेगी।
तिलक मार्ग पर जस्टिस क्लॉक
सुप्रीम कोर्ट के सामने तिलक मार्ग पर एक बड़ी वीडियो वॉल लग गई है। इसमें हर समय सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस क्लॉक चलती है। इससे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की रियल टाइम जानकारी जानी जा सकती है। आपको मालूम हो कि जस्टिस क्लॉक को वेबसाइट पर देखा जा सकता था, लेकिन आम जनता को सीधे जानकारी पहुंचाने और व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए जस्टिस क्लॉक का वीडियो वॉल लगाया गया है।