सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम को लेकर एक अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि, शादी के अमान्य घोषित होने पर भी स्थायी गुजारा भत्ता और अंतरिम भरण-पोषण से इंकार नहीं किया जा सकता। यह हमेशा उस केस के तथ्यों और उससे संबंधित पक्षों पर डिपेंड करेगा।
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने 12 फरवरी को मामले की सुनवाई की।
रिपोर्ट के मुताबिक, यह विवाद सुखदेव सिंह और उनकी पत्नी सुखबीर कौर के बीच हुआ था। इसमें सुखदेव ने तर्क दिया था कि उनकी शादी हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित की गई है, इसलिए उनकी पत्नी सुखबीर सिंह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं हैं।
कोर्ट ने कहा कि, “हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 11 के तहत अगर किसी विवाहित व्यक्ति की शादी अमान्य घोषित हो जाती है, तब भी वो धारा 25 के तहत मुआवजा पाने का हकदार है। यह केस के तथ्यों और संबंधित व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करता है।”
बीते वर्ष मामला सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने भी सुनाया था, लेकिन इसके बाद यह केस तीन न्यायाधीशों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया।
अगस्त, 2024 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने पूर्व में दिए कई फैसलों में माना कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह अमान्य घोषित होने के बाद भी भरण पोषण दिया जाएगा, लेकिन कुछ अन्य फैसलों में माना गया है कि इस एक्ट के तहत विवाह अमान्य घोषित होने के बाद भरण पोषण नहीं दिया जाएगा।
सुखबीर सिंह की ओर से पेश हुए वकील महालक्ष्मी पवनी ने बेंच को बताया था कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह अमान्य घोषित होने पर भरण पोषण देने के मामले में दो जजों के लगातार विरोधी फैसले हैं।
ऐसे में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए मामला 3 जजों की बेंच को सौंपा जाए।