भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में पौराणिक जागरों का समापन

ऊखीमठ/लक्ष्मण सिंह नेगी

मदमहेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी व पर्यटक गाँव रासी के मध्य में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरों का समापन भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ हो गया है। पौराणिक जागरों के समापन पर मदमहेश्वर घाटी के विभिन्न गांवों के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित कर विश्व समृद्धि व क्षेत्र के खुशहाली की कामना की।

पौराणिक जागरों के गायन से मदमहेश्वर घाटी सहित रासी गाँव का वातावरण दो माह तक भक्तिमय बना रहा। मंगलवार को पण्डित ईश्वरी प्रसाद भटट् ने ब्रह्म बेला पर पंचाग पूजन के तहत 33 कोटि देवी-देवताओं सहित भगवती राकेश्वरी व भगवान मदमहेश्वर का आवाहन कर आरती उतारी।

सुबह से ही राकेश्वरी मन्दिर में भक्तों का तांता लगा रहा तथा मदमहेश्वर घाटी के विभिन्न गांवों के ग्रामीणों ने भगवती राकेश्वरी की पूजा-अर्चना कर मनौती मांगी। दोपहर 1 बजे से प्रमुख जागर गायक पूर्ण सिंह पंवार के नेतृत्व में जागर गायन में अहम योगदान देने वाले ग्रामीणों ने पौराणिक जागरो के गायन से भगवान श्रीकृष्ण व पाण्डवों की महिमा का गुणगान किया।

दोपहर 2:10 बजे राकेश्वरी मन्दिर से बुग्यालों से ब्रह्म कमल लाने वाले युवाओं को ब्रह्म कमल राकेश्वरी मन्दिर परिसर में लाने का आमन्त्रण शंख ध्वनि से दिया गया तथा बुग्यालों से ब्रह्म कमल लाने वाले हरेन्द्र खोयाल, दीपक खोयाल, विजयपाल खोयाल ने भी शंख ध्वनि देकर आमन्त्रण स्वीकार किया तथा ब्रह्म कमल राकेश्वरी मन्दिर परिसर लाते ही भगवती राकेश्वरी के जयकारों से मन्दिर परिसर गुजायमान हो उठा।

उसके बाद भक्तों ने युगों से चली परम्परा के अनुसार भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित कर विश्व समृद्धि की कामना की। जानकारी देते हुए राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में श्रावण मास की संक्रांति के पावन अवसर पर पौराणिक जागरो का शुभारंभ होता है तथा प्रतिदिन सांय 7 बजे से 8 बजे तक पौराणिक जागरों के माध्यम से 33 कोटि देवी-देवताओं का आवाहन करने के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गुणगान किया जाता है तथा दो गते आश्विन को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ पौराणिक जागरो का समापन होता है।

शिक्षाविद भगवती प्रसाद भटट् ने बताया कि भगवती राकेश्वरी को अर्पित होने वाले ब्रह्म कमल लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई से लाये जाते है तथा ब्रह्म कमल लाने के लिए कई पौराणिक परम्पराओं का निर्वहन करना पड़ता है। बद्री केदार मन्दिर समिति पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में पौराणिक जागरों की परम्परा युगों पूर्व की है।

मन्दिर समिति उपाध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि युगों से चली परम्परा को जीवित रखने में रासी व उनियाणा गांव के ग्रामीणों का अहम योगदान है। महिला मंगल दल अध्यक्ष गीता पंवार भगवती राकेश्वरी मन्दिर में पौराणिक जागरों की परम्परा युगों पूर्व की है तथा रासी गाँव में पौराणिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक परम्पराओं के निर्वहन में सभी ग्रामीणों का अहम योगदान रहता है।

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