रूस की संसद से हरी झंडी, भारत की विदेश नीति और सुरक्षा ढांचे में बड़ा बदलाव
रूस की संसद (डूमा) द्वारा भारत‑रूस रक्षा समझौते को मंजूरी मिलने के बाद नई दिल्ली और मॉस्को की रणनीतिक साझेदारी एक नए चरण में प्रवेश करती दिख रही है।
रक्षा लॉजिस्टिक्स सपोर्ट से जुड़े इस समझौते से दोनों देशों के सशस्त्र बलों को एक‑दूसरे के सैन्य अड्डों और संसाधनों तक आसान पहुंच मिलेगी।
नतीजतन, भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा क्षमता, आपूर्ति शृंखला की मजबूती और आपात स्थितियों में त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होने की उम्मीद है।

क्या है भारत‑रूस रक्षा समझौता
इस समझौते के तहत दोनों देश एक‑दूसरे को ईंधन, स्पेयर पार्ट्स, मरम्मत सेवाएं और लॉजिस्टिक सहयोग देंगे।
इसका सीधा लाभ संयुक्त अभ्यासों से लेकर समुद्री अभियानों और आपदा‑राहत ऑपरेशनों तक दिखाई देगा।
समझौते के प्रमुख बिंदु
- ऑपरेशनल जरूरतों में त्वरित लॉजिस्टिक सपोर्ट
- साझा अभ्यासों के दौरान संसाधनों की उपलब्धता
- संकट काल में आपूर्ति शृंखला की निरंतरता
- तकनीकी सहयोग से मेंटेनेंस समय में कमी
भारत की विदेश नीति पर असर
यह भारत‑रूस रक्षा समझौता भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” को मजबूती देता है।
भारत जहां बहुपक्षीय कूटनीति पर दीर्घकाल से काम कर रहा है, वहीं यह करार एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार के साथ निरंतर सहयोग का ठोस संकेत है।
क्यों अहम है यह करार
- इंडो‑पैसिफिक में भारत की स्थिति मजबूत
- रक्षा खरीद के साथ‑साथ ऑपरेशनल इंटरऑपरेबिलिटी
- वैश्विक मंचों पर कूटनीतिक विश्वसनीयता में बढ़त
- ऊर्जा और रक्षा—दोनों मोर्चों पर संतुलित साझेदारी
सैन्य और सामरिक लाभ
सैन्य विशेषज्ञों के मुताबिक, इस करार से भारतीय नौसेना और वायुसेना को अभियान‑क्षमता में बड़ा फायदा मिलेगा। दूर‑समुद्र क्षेत्रों में मौजूदगी के दौरान ईंधन और सपोर्ट की उपलब्धता रणनीतिक बढ़त देती है।
रणनीतिक फायदे एक नजर में
- समुद्री मार्गों की बेहतर सुरक्षा
- संयुक्त अभ्यासों की आवृत्ति में वृद्धि
- हाई‑एंड प्लेटफॉर्म्स का त्वरित मेंटेनेंस
- संकट में ऑपरेशनल रेजिलिएंस
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह कदम “रक्षा‑कूटनीति का मील का पत्थर” है। वहीं, विपक्ष ने भी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सकारात्मक बताते हुए व्यापक सहमति का संकेत दिया है।
विश्लेषकों के अनुसार, दुर्लभ राजनीतिक एकमत बताता है कि भारत‑रूस रक्षा समझौता महज तकनीकी नहीं, बल्कि दूरगामी रणनीतिक निर्णय है।
दुनिया की प्रतिक्रिया
वैश्विक विश्लेषक इसे बदलते भू‑राजनीतिक परिदृश्य में भारत का प्रैक्टिकल और बैलेंस्ड अप्रोच मान रहे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय थिंक‑टैंकों ने नोट किया कि यह करार भारत को एशिया‑यूरोप कनेक्ट में एक स्थिर स्तंभ बनाता है।

















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