प्रख्यात लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात दिल्ली एम्स में निधन हो गया। वह 72 वर्ष की थीं। शारदा सिन्हा का मल्टीपल मायलोमा (एक प्रकार का ब्लड कैंसर) का इलाज किया जा रहा था।
विस्तार
देश की सबसे मशहूर लोकगायिक शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं। लेकिन, उनकी आवाज हमेशा जिंदा रहेंगी। दिवाली से छठ महापर्व तक उनकी ही गीत हर घर, गली और छठ घाटों पर गूंजतीं रहती हैं।
मंगलवार देर रात दिल्ली एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली। महज 72 साल की उम्र में ही उनका जाना किसी बड़े सदमे से कम नहीं है।
एक अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलसा गांव में शारदा सिन्हा का जन्म हुआ था। उनके पिता सुखदेव ठाकुर सुपौल विलियम्स हाई स्कूल के प्राचार्य रहे और बाद में शिक्षा विभाग के अधिकारी से सेवानिवृत्त हुए। शारदा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राघोपुर प्रखंड के हुलास गांव में ही पूरी की।
शारदा सिन्हा का करियर 1980 के दशक में शुरू हुआ, जब उनकी अनोखी आवाज़ में बिहार के लोक संगीत का सार समाहित था। उन्होंने पारंपरिक मैथिली लोकगीतों को गाकर शुरुआत की और जल्द ही पूरे बिहार और उसके बाहर लोकप्रियता हासिल कर ली।
उनके संगीत को मैथिली, भोजपुरी, मगही और हिंदी जैसी भाषाओं में गाया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक त्योहारों और परंपराओं का जश्न मनाने वाले गीत शामिल हैं।

2017 से मल्टीपल मायलोमा से जूझ रही थीं शारदा सिन्हा
अंशुमान सिन्हा के अनुसार, 2017 से शारदा सिन्हा मल्टीपल मायलोमा से लड़ रही थीं। हम परिवार के लोग इस बात को जानते हैं। उनकी इच्छा थी कि मेरी व्यक्तिगत पीड़ा को सार्वजनिक नहीं की जाए। उन्हें क्या तकलीफ है, इस बात की व्याख्या करके काम करना, उन्हें पसंद नहीं। पिता जी (ब्रजकिशोर सिन्हा) के देहांत के बाद उनका मनोबल टूट गया उन्हें बड़ा झटका लगा।
वह पूरी तरह से टूट गईं। इस कारण वह आंतरिक लड़ाई लड़ने में कमजोर हो गईं। पिताजी के श्राद्ध खत्म होने के ठीक बाद हमलोग उनके स्वास्थ्य की रूटीन जांच के लिए दिल्ली आए। इसी दौरान उनकी बीमारी में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया। कुछ दिन स्थिति ऐसी हुई अस्पताल में जंग लड़ते-लड़ते उनकी सांसें थम गईं।
शारदा सिन्हा पुरस्कार और सम्मान
संगीत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए शारदा सिन्हा को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। 1991 में उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 2018 में उन्हें भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। लोक संगीत में उनके काम के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
अस्पताल से व्रतियों के लिए जारी किया था गीत
महापर्व छठ के आरंभ होने से चार दिन पूर्व उन्होंने छठ गीत दुखवा मिटाई छठी मैया, रऊए आसरा हमार.. जारी किया था। एम्स अस्पताल से ही उनके बेटे ने गीत को इंटरनेट मीडिया पर जारी कर लोगों को छठ की शुभकामना दी थी।
शारदा सिन्हा द्वारा छठ पूजा पर आधारित गीत हो दीनानाथ… को लोगों ने खूब पसंद किया था। बेमिसाल शख्सियत शारदा सिन्हा को बिहार कोकिला के अलावा भोजपुरी कोकिला, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न, मैथिली विभूति सहित कई सम्मान मिले हैं। शारदा सिन्हा की बिगड़ते तबीयत को देखते हुए पीएम मोदी ने अंशुमन सिन्हा से कहा था कि वे बिल्कुल मजबूती से अपनी मां का इलाज कराएं।
राजकीय सम्मान के साथ शारदा सिन्हा को अंतिम विदाई
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि बिहार कोकिला, पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित स्वर्गीय शारदा सिन्हा जी का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा।
सरकार के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने शारदा सिन्हा जी के निधन की सूचना मिलते ही स्थानिक आयुक्त नई दिल्ली को स्वर्गीय शारदा सिन्हा जी के परिवार के सदस्यों से समन्वय स्थापित कर उनका पार्थिव शरीर वायुयान (फ्लाइट) से पटना भेजने का निर्देश दिया।
मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारी पटना को निर्देश दिया है कि राजकीय सम्मान के साथ स्वर्गीय शारदा सिन्हा जी के अंतिम संस्कार हेतु सभी आवश्यक व्यवस्था ससमय सुनिश्चित करेंगे।
जानिए, क्या होता है कि मल्टीपल मायलोमा
मल्टीपल मायलोमा एक प्रकार ब्लड कैंसर होता है। रोगी के गुर्दे, हड्डियों और शरीर की स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) और सफेद रक्त कोशिकाओं (WBC) और प्लेटलेट्स (Platelets) बनाने की क्षमता को प्रभावित कर देता है।
मल्टीपलमायलोमा यह सफेद रक्त कोशिका में बनता है। यह स्वस्थ कोशिकाएं एंटीबॉडी प्रोटीन बनाकर संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। एंटीबॉडी रोगाणुओं को खोजती है और उन पर हमला करती हैं।
मल्टीपल मायलोमा में, कैंसरयुक्त प्लाज्मा कोशिकाएं अस्थि मज्जा (Bone marrow)में बनती हैं। कैंसर कोशिकाएं स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को अस्थि मज्जा से बाहर निकाल देती हैं। इस कारण कैंसर कोशिकाएं ऐसे प्रोटीन बनाती हैं जो ठीक से काम नहीं करते। धीरे-धीरे यह शरीर को कमजोर कर देता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने लगी है। मरीज की तबीयत बिगड़ने लगती है।