जगमोहन रौतेला
1965–71 युद्धों के वीर योद्धा कर्नल हरीश रौतेला की अस्थियों का चित्रशीला घाट में विसर्जन
सैनिक सम्मान, परिवार और गणमान्यजनों की मौजूदगी में रानीबाग (हल्द्वानी) में सम्पन्न हुआ अस्थि विसर्जन
जज फार्म, हल्द्वानी निवासी तथा मूल रूप से बागेश्वर जिले की कमस्यार घाटी के
नरगोली गांव से जुड़े कर्नल हरीश रौतेला की अस्थियों का
विसर्जन शनिवार को रानीबाग स्थित चित्रशीला घाट में पूरे विधि-विधान के साथ किया गया।
देश की रक्षा में 1965 और 1971 के भारत–पाक युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले
कर्नल रौतेला को इस अवसर पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
वीरता और सेवा का स्वर्णिम अध्याय
कर्नल रौतेला ने 1971 के भारत–पाक युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए विशिष्ट योगदान दिया,
जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सेना मेडल से सम्मानित किया गया।
उनके सम्मान में पाकिस्तान सीमा के समीप स्थित गुरकी गांव का नामकरण “हरीश नगर” किया गया,
जो उनकी वीरता की स्थायी पहचान है।

अंतिम विदाई और सैन्य सम्मान
उल्लेखनीय है कि कर्नल रौतेला हाल के वर्षों में अपने बड़े पुत्र सुखेंदु रौतेला के साथ बेंगलुरु में रह रहे थे।
उम्र संबंधी समस्याओं के चलते उन्हें मणिपाल अस्पताल में भर्ती कराया गया,
जहां उपचार के दौरान 16 दिसंबर 2025 को 88 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
18 दिसंबर को बेंगलुरु में पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
इस अवसर पर आठ गढ़वाल राइफल और सीओएजी द्वारा उन्हें सैन्य सलामी दी गई।
परिवार ने निभाई अंतिम इच्छा
उनकी अंतिम इच्छा के अनुरूप, अस्थि विसर्जन का कार्य उनके बड़े पुत्र सुखेंदु रौतेला
और छोटे पुत्र राघवेंद्र रौतेला ने परंपरानुसार सम्पन्न किया।
विधि-विधान पुरोहित शिव दत्त जोशी द्वारा कराया गया।
श्रद्धांजलि देने पहुंचे गणमान्य
चित्रशीला घाट में श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में इतिहासकार प्रो. अजय रावत, प्रो. आनंद सिंह रौतेला,
दान सिंह रौतेला, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य कैलाश रौतेला, वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला,
द्वाराहाट इंजीनियरिंग कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. रमेश चंद्र सिंह मेहता,
शोभा रावत, शंकर रौतेला, सुरेंद्र रौतेला, अशोक रौतेला, सुशील रौतेला, निक्कू रौतेला और चिरंजीवी रौतेला शामिल रहे।

परिवार, शिक्षा और सैन्य यात्रा
कर्नल रौतेला का जन्म 29 जनवरी 1937 को बागेश्वर जिले के नरगोली गांव में हुआ।
उनकी माता विशनुली रौतेला और पिता हयात सिंह रौतेला ब्रिटिश आर्मी में सुबेदार थे,
जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में कई मोर्चों पर वीरता दिखाई और “जंगी” की उपाधि प्राप्त की।
कर्नल रौतेला की शिक्षा किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री स्कूल, जालंधर में हुई। वे चार भाइयों में सबसे बड़े थे।
1962 में उन्हें सेना में कमीशन मिला और आठ गढ़वाल राइफल में नियुक्ति हुई।
1965 में वे मेजर बने और कांडा–कमस्यार क्षेत्र के आज़ादी बाद के प्रथम सैन्य अधिकारी रहे।
1988 में वे कर्नल पद से सेवानिवृत्त हुए।
सेवा के दौरान उन्हें फील्ड मार्शल सैम मानैकशॉ, जनरल थिमैया और जनरल वैद्य जैसे महान सैन्य नेतृत्व द्वारा सम्मानित किया गया।
















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