हिमवंत कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल की पुण्यतिथि पर विशेष

अनसूया प्रसाद मलासी

जीवन के मात्र 28 बसंत का जीवन जीने तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर भी हिंदी जगत को एक विशाल काव्य भंडार देने वाले हिमवंत कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल जी की आज पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित है।

रुद्रप्रयाग जिले के तल्ला नागपुर पट्टी के प्रसिद्ध मालकोटी गाँव में 20 अगस्त सन 1919 को भोपाल सिंह एवं जानकी देवी के घर में चंद्र कुँवर का जन्म हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा उडामांडा प्राथमिक स्कूल और मिडिल शिक्षा नागनाथ (पोखरी) से हुई। बाद में पौड़ी, देहरादून और इलाहाबाद से उच्च शिक्षा प्राप्त की। छात्र जीवन से ही उन्होंने कविता लिखनी प्रारंभ की।

खंडहर हुआ कवि का घर

कवि की प्रमुख प्रसिद्ध कृतियां हैं – नंदिनी, पयस्विनी, विराट ज्योति, हिमवंत का एक कवि, काफल पाक्कू, हिरण्यगर्भ, गीत माधवी, साकेत, उदय के द्वारों पर, प्रणयनी, हिम ज्योत्सना आदि। उनके मित्र शंभू प्रसाद बहुगुणा ने उनकी विलुप्त हो रही रचनाओं को प्रकाशित किया। तभी से काव्य जगत में चंद्र कुंवर का दूसरा नाम हिमवंत कवि प्रसिद्ध हुआ।

इलाहाबाद में क्षय रोग से बीमार होने के बाद वे अपने गाँव मालकोटी लौट आये। कुछ समय उन्होंने अगस्त्यमुनि मिडिल स्कूल में अध्यापन कार्य किया और बाद में अपने नए गाँव कंचनगंगा और मंदाकिनी के तट पर स्थित पंवालिया (भीरी) में रहने लगे। वहीं उन्होंने अनेक रचनाओं की रचना की, जिन्हें देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं ने प्रकाशित किया। यहीं उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय बिताया। उन्हें अपनी मृत्यु का आभास हो गया था।

उन्होंने लिखा –

नव बसंत में ही मेरे तरु को झरना था,

हाय! मुझे इस उठते यौवन में ही मरना था।

एक अन्य कविता –

अपने स्वप्नों की समाधि बन आज खड़ा है

उसके ऊपर कई युगों का श्राप पड़ा है

डरता आज स्वयं की परछाईं से खंडहर

साँस भर रहा है पृथ्वी पर खड़ा खंडहर।

– (कवि चन्द्र कुँवर बर्त्वाल की ‘खंडहर’ कविता)

कवि चंद्र कुँवर का घर हुआ खंडहर…

मौत को सामने देखकर उससे दो-दो हाथ करने के लिए आतुर कवि ने मृत्यु-शैय्या पर पडे़ रहकर भी अनेक कविताएं लिखी और अपार रचना संसार देकर 14 सितंबर 1947 के दिन इस शरीर को त्यागकर विदा हुए। किंतु आज सरकार की उदासीनता से उनका पैतृक घर पंवालिया खंडहर में तब्दील हो गया है।

पंवालिया जाने का पैदल पुल

रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 993 मी. की ऊँचाई पर रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर बांसवाड़ा या फिर भीरी से होकर मंदाकिनी और कंचनगंगा के संगम पर स्थित पंवालिया स्थित है। जो आज शासन-प्रशासन की नजरों से दूर उपेक्षित, वीरान और खंडहर प्रदेश बनकर रह गया है।

कवि चन्द्र कुँवर बर्त्वाल की मृत्यु के बाद हताश और निराश उनका परिवार भी कुछ समय बाद वहाँ से अपने मूल गाँव मलकोटी लौट आया था। बाद में उनके परिजनों द्वारा सरकार को यह भूमि हस्तांतरित कर दी गई। वर्तमान में कृषि विभाग उत्तराखंड का राजकीय कृषि प्रक्षेत्र पंवालिया (बष्टी) यहां पर है।

खंडहर हुई विरासत

मार्च 1978 में यह फार्म कृषि विभाग ने शुरू किया। शुरू में इसका क्षेत्रफल 16.50 हेक्टेयर था लेकिन वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद अब यह 2.85 हेक्टेयर ही रह गया है। इस फार्म हाउस में कृषि विभाग के कर्मचारी ने बताया कि -‘पहले यहां सिंचित भूमि थी। खूब चहल-पहल थी लेकिन वर्तमान में यहाँ के मकान टूट जाने से और सरकार की उदासीनता से यहाँ की उत्पादन क्षमता खत्म हो गई है। इस फार्म हाउस में कृषि विभाग ने कुछ और मकान बनाये थे, जो आज खंडहर हो गए हैं। स्थिति इतनी खराब है कि कर्मचारियों के लिए रात को क्या, दिन में भी सिर छुपाने के लिए जगह नहीं बची है।

कवि चन्द्र कुँवर बर्त्वाल का मकान आज खंडहर व झाड़ियों से घिरा हुआ है। दिन में भी अकेला आदमी यहाँ जाने से डरता है। पंवालिया की दुर्दशा देखकर पूर्व ब्लाॅक प्रमुख घनानंद सती और कवि के चहेते लोगों ने यहाँ सरकार से कवि के नाम पर कृषि, उद्यान रिसर्च सेंटर खोलने की मांग की है, ताकि समाज को इस फार्म हाउस का लाभ मिल सके तथा स्थानीय लोगों की आजीविका भी सुधर सके।

पंवालिया के नीचे कंचनगंगा (डमारगाड) और मंदाकिनी नदी का संगम
https://regionalreporter.in/mata-murti-utsav-in-badrinath-dham/
https://youtu.be/9QW0uH_UIwI?si=DlPxjyhh-AiCiwZC

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