सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक महिला को अपने पति के साथ रहने के आदेश का पालन नहीं करने के बाद भी उस स्थिति में पति से भरण-पोषण का अधिकार दिया जा सकता है जब उसके पास साथ रहने से इनकार करने का वैध और पर्याप्त कारण हो।
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक अहम फैसले में कहा है कि पति की मर्जी के खिलाफ महिला अगर अपनी मर्जी से वैध कारणों के आधार पर अलग रहती है तो भी वह गुजारा भत्ता की हकदार है।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुआई वाली बेंच के सामने यह कानूनी सवाल था कि क्या एक पति जिसने दांपत्य जीवन बहाल करने के मामले में अपने फेवर में डिक्री यानी फैसला हासिल की है, वह CRPC की धारा-125 के तहत अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से बच सकता है?
जस्टिस संजय कुमार द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत पारित वैवाहिक अधिकारों के आदेश का पालन करने से पत्नी द्वारा उचित कारण से इनकार करना उसे CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं करता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि CRPC की धारा-125 का प्रावधान महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
दरअसल, हिंदी मैरिज एक्ट की धारा-9 के तहत पति अपने वैवाहिक अधिकार को बहाल करने के लिए अर्जी दाखिल कर सकता है ताकि उसका दांपत्य जीवन बहाल हो सके।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए पत्नी की अपील स्वीकार की और फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को बहाल कर किया।
न्यायालय ने झारखंड हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध पत्नी की अपील स्वीकार कर ली, जिसमें फैमिली कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया गया, जिसमें प्रतिवादी-पति को अपीलकर्ता-पत्नी को 10,000/- रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना का आदेश पारित करने से पति को अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी से मुक्ति नहीं मिलेगी। न्यायालय के अनुसार, पुनर्स्थापना आदेश प्रासंगिक सामग्री के रूप में कार्य करता है, लेकिन यह भरण-पोषण की पात्रता को निर्णायक रूप से निर्धारित नहीं करता।
न्यायालय को पत्नी की भरण-पोषण याचिका पर निर्णय लेते समय उसके अलग रहने के कारणों का स्वतंत्र रूप से आकलन करना चाहिए।